स्त्री लड़ाई नहीं चाहती,
इसलिए नहीं कि वो कायर है,
बल्कि इसलिए कि वो,
खत्म होती प्रजाति की तरह संरक्षित है,
स्त्री लड़ाई नहीं चाहती,
क्योंकि सारी गालियाँ,
दुनिया भर की भाषाएँ घूमने के बाद,
चुनती है उसी के जननांग।
क्योंकि वो जानती हैं,
बिसात की दाँव पर,
लगेगा उसका अस्तित्व,
उसका शरीर बनेगा,
अंततः योद्धाओं की विश्राम स्थली,
और खंडहर कर उसके जिस्म को,
मनाये जायेंगे दुश्मन के मान मर्दन के उत्सव।
बिकेगा वेश्यालय में अंततः
रोटी को उसका यौवन,
अपनी सृष्टि अपनी बनाई दुनिया से,
वही होगी वंचित ,
और उसकी कोख के हरामी बच्चे,
उम्र भर रहेंगे डर डर कर।
--शेली किरण
बहुत भड़िया लिखा है।
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