भारत
में सगे–सम्बन्धियों के बीच महिलाएँ कितनी सुरिक्षत हैं? यह
सवाल अकसर उठाया जाता रहा है। इसे हम महाभारत की एक घटना से समझ सकते हैं।
युधिष्ठिर ने अपनी पत्नी द्रोपदी को जुए के दाँव पर लगा दिया और उसे हार गये। यानी
पहले भी महिलाओं को ऐसी वस्तु माना जाता था जिसे जुए के दाँव पर लगाया जा सकता था।
लेकिन आज हालत ज्यादा भयावह हो गयी है। सगे–सम्बन्धियों के
बीच महिलाओं की हालत और खराब होती जा रही है। इस लेख के पहले हिस्से में हम
अखबारों में आने वाली ऐसी घटनाओं को देखेंगे जो रिश्तों में बलात्कार की घिनौनी
दास्तान बयान करती हैं। इसके बाद हम इस सवाल का जवाब ढूँढेंगे कि ऐसी घटनाएँ क्यों
घट रही हैं? हमारी समाज व्यवस्था में वह कौन सी खामी है
जिसके चलते महिलाएँ अपनों द्वारा छली जा रही हैं।
राजीव
नगर में एक पिता ने दूसरी क्लास में पढ़ने वाली अपनी मासूम बेटी को हवस का शिकार
बनाया। वह अपनी बेटी के साथ तीन साल तक बलात्कार करता रहा। बदनामी के डर से माँ
बर्दास्त करती रही। जब वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज
करायी गयी।
दूसरे
मामले में एक लड़की के साथ नौ साल तक पिता और भाई बलात्कार करते रहे। लखनऊ के आलम
बाग की रहने वाली पीड़िता बचपन में नानी के घर पली–बढ़ी। जब अपने घर आकर रहने लगी, उसी समय उसके बाप की
तबीयत खराब हो गयी। डॉक्टर के बजाय तांत्रिक को बुलाया गया। तांत्रिक की घिनौनी
हरकत देखिए! उसने कहा कि पिता के ऊपर बेटी का साया है। इससे बचने के लिए बाप को
बेटी से शारीरिक सम्बन्ध बनाने होंगे। बाप ने बेटी के साथ बलात्कार किया। तांत्रिक
की बातों के चलते माँ ने भी बाप का साथ दिया। इसके बाद तो यह रोजाना का काम हो
गया। जिस दिन पीड़िता बाप के साथ सोने से मना करती, उसे माँ–बाप दोनों पीटते। पीड़िता का भाई जब घर आया तो पीड़िता ने उसे अपनी आपबीती
सुनायी। साथ देने के बजाय भाई ने भी उससे बलात्कार किया बाप–बेटे
ने उसके साथ 9 साल तक बलात्कार किया। इन नौ सालों में वह आठ बार गर्भवती हुई और हर
बार उसका गर्भपात कराया गया।
तीसरे
मामले में, मेरठ के दो सगे भाईयों ने 15
साल की बहन के साथ चार साल तक बलात्कार किया। विरोध करने पर माँ को जान से मारने
की धमकी देते थे और बहन के साथ मारपीट करते थे। बाप दिल का मरीज था जिसकी पहले ही
मृत्यु हो गयी थी। चैथे मामले में, दहेज की माँग पूरी नहीं
होने पर एक गर्भवती महिला के साथ ससुर और नन्दोई ने बलात्कार किया। ससुराल वाले
दहेज में 2 लाख रुपये की माँग कर रहे थे। जब पीड़िता ने यह घटना अपने पति को बतायी
तो पति ने उसका साथ नहीं दिया और उससे तलाक ले लिया।
इस
तरह हम देखते हैं कि ऐसी खबरों से रोज ही अखबार के पन्ने भरे रहते हैं। चाचा,
ताऊ, भाई, बाप, ससुर, नन्दोई में से कोई भी रिश्ता पाक–साफ नहीं बचा। अब हम पति–पत्नी के सम्बन्धों की
पड़ताल करेंगे। अमूमन हमारे समाज में पति द्वारा किये गये बलात्कार को बुरा नहीं
माना जाता। फिर भी रोज–ब–रोज मन को
परेशान करने वाली ढेरों घटनाएँ घट रही हैं। जैसे बेतूल, मध्य
प्रदेश में एक युवक ने अपनी पत्नी के साथ सामूहिक बलात्कार किया। पति अकसर शराब के
नशे में पत्नी के साथ मारपीट करता और ठीक से खाने को नहीं देता था। इससे तंग आकर
पत्नी मायके चली गयी थी। जब पति चार दोस्तों के साथ मायके से पत्नी को ला रहा था,
रास्ते में एक नदी के किनारे चार दोस्तों के साथ मिलकर उसने पत्नी
से बलात्कार किया और उसे धमकाया कि अगर घटना का जिक्र किसी से किया तो उसे जान से
मार देगा। जब महिला का भाई उससे मिलने आया, तब उसने बड़ी
मुश्किल से अपनी आपबीती सुनायी।
अकसर
पत्नियाँ अपने–अपने पतियों द्वारा किये गये
बलात्कार के घाव को मन में ही दबाकर सह जाती हैं। वे किसी से शिकायत नहीं करती
हैं। वे सोचती हैं कि जमाने में कौन उनकी सुनेगा जब पति ने ही साथ नहीं दिया?
लेकिन कुछ पत्नियाँ साहस के साथ अपनी बात साझा करती हैं। उनमें से
कुछ बताती हैं कि उनके पति उनके साथ बलात्कार करते हैं। पति के लिए वे एक खिलौने
की तरह होती हैं, जिसे वे अलग–अलग
तरीके से इस्तेमाल करना चाहते हैं। कई मामलों में जब पति–पत्नी
की लड़ाई होती है तो पति सेक्स के समय पत्नी को प्रताड़ित करता है। तबियत खराब होने
पर अगर कभी पत्नी ने मना किया तो पति मारपीट शुरू कर देता है। कई बार चाहे कितना
भी काम हो उसे थकावट के बावजूद हर रात पति के सामने पेश होना पड़ता है। थकान के
बावजूद बेमन से किये गये सेक्स के चलते धीरे–धीरे वे पति से
नफरत करने लगती हैं।
परिवार
के लोग अकसर कहते हैं कि बाहर की दुनिया लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है और
लड़कियों को घर से बाहर निकलने पर हजार बार सोचना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि
लडकियाँ छोटे कपड़े पहनती हैं, इसीलिए उनका
बलात्कार होता है। अगर ऐसा होता तो कोई पिता, भाई, पति या अन्य रिश्तेदार बलात्कारी न होता। लेकिन जब घर के मर्द ही ऐसे हों
तो बाहर के मर्दों को हम क्या कहें? ज्यादातर महिलाएँ यह सब
बर्दास्त करती रहती हैं और खुद मंे घुटती रहती हैं। बहुत कम महिलाएँ ऐसी होती हैं
जो खुद से और अपनी बुरी दशा से संघर्ष कर पाती हैं, इसलिए वे
अपने अकेले प्रयास से अपनी जिन्दगी का अलग रास्ता बना भी नहीं पाती।
यह
सब होते हुए भी ‘वैवाहिक बलात्कार’
भारत में कानून की नजर में अपराध नहीं है। इसे बलात्कार (रेप) भी
नहीं माना जाता। भारत में अगर पत्नी अपने पति पर बलात्कार का आरोप लगाती है तो उसे
घरेलू हिंसा के मामले में ही गिना जाता है। भारत में आज भी घरेलू हिंसा के खिलाफ
सख्त कानूनों की कमी है। इसलिए बलात्कारी पति को बहुत कम सजा मिलती है। पत्नी के
बलात्कार के खिलाफ भारत में कोई कानून ही नहीं है। देश में इतने बु़िद्वजीवी हैं,
पढ़े–लिखे लोग हैं, कोर्ट
कानून संविधान है, फिर भी न तो वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ
कोई कानून है और न ही इस मुद्दे को मीडिया में उठाया जाता है। यह सब अन्याय और
शोषण शान्तिपूर्वक पर्दे के पीछे बदस्तूर जारी रहता है। जैसे सबकुछ बहुत अच्छा चल
रहा हो और हमारा समाज यह पाखण्ड करने में सफल हो जाता है कि हमारी संस्कृति दुनिया
मंे सबसे महान है।
दरअसल
शासन–प्रशासन, मीडिया, कोर्ट–कचहरी सब पुरुषांे के अधिकार में हैं। इनके अपने बुद्विजीवी हैं जो खुद भी
पुरुष हैं और ये सभी उस पुरुषवादी मानसिकता से ग्रसित हैं जो घोर महिला विरोधी है।
कुछ अपवादों को छोड़कर इनमें से सभी औरत को दोयम दर्जे का नागरिक मानते हैं या कई
बार तो महिलाओं को न तो नागरिक मानते हैं और न ही इनसान मानते हैं। वे महिलाओं को
वस्तु या माल समझते हैं जो उनकी जिन्दगी को खुशियों से भर दे। वे उनके बच्चों की
परवरिश करने वाली दाई हैं, घर का काम–काज
करने वाली नौकरानी हैं और उनकी यौन इच्छाओं को पूरा करने वाली सेक्स ऑबजेक्ट हैं।
ऐसी घिनौनी मानसिकता के लोग क्या कभी ऐसे उपाय करेंगे जो महिलाओं को वैवाहिक
बलात्कार से मुक्ति दिला सकेें।
अब
सवाल यह है कि ऐसे बुरे हालात को कैसे बदला जाये? महिलाओं और बच्चियों को सम्मानजनक जिन्दगी किस तरह से हासिल हो सकती है?
इसके लिए सबसे पहला कदम तो यह होगा कि महिला–महिला
के बीच दोस्ती, प्यार और लगाव की जबरदस्त भावना पैदा करनी
होगी। महिलाओं को समझाना होगा कि वह एक–दूसरे की दुश्मन नहीं
हैं, बल्कि उनका हित एक समान है। वे एक दूसरे के साथ अपना
सुख–दुख साझा करें और एक दूसरे से सहानुभूति रखें। उन्हें यह
समझना होगा कि जो दुर्व्यवहार और उत्पीड़न आज किसी दूसरी महिला के साथ हो रहा है,
कल उनके साथ भी हो सकता है। इस पुरुषवादी समाज में महिला होना ही
सबसे बड़ा अपराध बना दिया गया है जिसकी सजा छोटे–मोटे
दुर्व्यवहार, बलात्कार से लेकर मौत तक हो सकती है। यह समाज
महिलाओं के लिए नरक के समान है। यहाँ कोई भी महिला कुछ क्षणों के लिए खुश रह भी
सकती है तो अपने आस–पास के खतरनाक और घिनौने हालात को भुलाकर
ही। लेकिन इन समस्याओं की तरफ से मुँह मोड़ कर या इन्हें भुलाकर इनका समाधान नहीं
किया जा सकता।
महिलाओं
को परिवार और समाज में सम्मान मिले, इसके
लिए पुरुषों की महिला विरोधी सोच बदलनी होगी। ऐसी सभी मूल्य–मान्यताओं
को हमें खारिज करना होगा जो महिलाओं को पुरुषों की तुलना में छोटा समझती हांे।
वैवाहिक बलात्कार और अन्य रिश्तों में बलात्कार को रोकने के लिए कानून बनाया जा
सकता है। हालाँकि ऐसे कानूनों से बहुत थोड़ा ही फायदा होगा, क्योंकि
अधिकांश मामलों में महिलाएँ चुप रह जाती हैं या परिवार समाज द्वारा चुप करा दी
जाती हैं, ताकि बदनामी से बचा जा सके। लेकिन जब तक महिलाएँ
मिल–जुलकर इस समस्या को उठाती नहीं हैं, तब तक इस समस्या का समाधान होना नामुमकिन है। इसलिए उत्पीड़न की दूसरी
घटनाओं की तरह ही रिश्तों में बलात्कार के मामले में भी महिलाओं को खुलकर आवाज
उठानी चाहिए। हमें इस समस्या के बारे में आपस में बात करनी चाहिए और एक दूसरे की
मदद करनी चाहिए। अगर महिलाएँ संगठित हों तो इसे एक ऐसे आन्दोलन का रूप भी दिया जा
सकता है, जिसके जरिये इस समाज की घिनौनी सच्चाई को बेपर्दा
किया जा सके। ऐसे आन्दोलनोें से सभी महिलाओं को जागरूक किया जा सकेगा।
––सुनीता शर्मा
(मुक्ति के स्वर अंक 21, मार्च 2019)
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