Wednesday, February 20, 2019

क्यों मनाते हैं महिला दिवस?

1917 में सेंट पीटर्सबर्ग, रूस में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का प्रदर्शन
सारे विश्व में हर साल 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यह दिवस महिलाओं के सम्मान में जातिधर्म, भाषा और सभी तरह के भेदभाव से ऊपर उठकर सारा विश्व मनाता है।
इतिहास के अनुसार महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त हो, इसके लिए सर्वप्रथम महिलाओं द्वारा ही इस मुहिम की शुरुआत हुई थी। फ्रांसीसी महिलाओं के एक समूह ने ब्रुसेल्स में इस दिन एक जूलुस निकाला। इस जूलुस का उद्देश्य युद्ध की वजह से महिलाओं पर बढ़ते हुए अत्याचार को रोकना था।
अमरीका में सोशलिस्ट पार्टी के द्वारा पहली बार महिला दिवस 1909 में मनाया गया। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित हुआ। उस समय महिला दिवस की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाना था।
19 मार्च 1917 में रूस की महिलाओं ने महिला दिवस के दिन एक ऐतिहासिक हड़ताल की। अन्तरिम सरकार को घुटने टेकने पड़े और महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था। और बाकि दुनिया में गे्रगेरियन कैलेंडर चलता था जो पूरी दुनिया में स्वीकृत है। ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च था। आज पूरी दुनिया में 8 मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।
रूस की उस समय की राजधानी सेण्ट पीटर्सबर्ग में मजदूर संगठनों ने महिला दिवस के उपलक्ष्य में कई कार्यक्रमों की जोरदार तैयारियाँ की थी। जगहजगह सभाओं, मीटिगों, भाषणों का आयोजन किया गया था। पर्चे छपकर तैयार थे। इसके जरिये मजदूरों में राजनीतिक चेतना पैदा करने की कोशिश की जा रही थी।
1914 में शुरू हुए पहले महायुद्ध में रूस को भी धकेल दिया गया। राजा जार इस बहाने अपना साम्राज्य और अधिक बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। रूस के जार की लालच की कीमत वहाँ की जनता को चुकानी पड़ रही थी और वह भीषण परिस्थितियों से गुजर रही थी। भारी संख्या में जनता की जान जा रही थी। उनकी सम्पत्ति नष्ट हो रही थी। गाँवगाँव और घरघर से पुरुषों को जबरदस्ती सेना में भर्ती किया जा रहा था। खेती के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले घोड़ों को भी पकड़पकड़ कर युद्ध के मोर्चे पर भेजा जा रहा था। इन सैनिकों के पास न तो युद्ध का प्रशिक्षण था, न ही ढंग के हथियार। बिना तैयारी के उनको युद्ध में धकेला जा रहा था। खेती में काम करने वाले लोगों और पशुओं की संख्या एक दम घट गयी थी। इसी वजह से रूस में अनाज की भारी कमी होने लगी। यह कमी इतने बड़े पैमाने की थी जिसे कभी नहीं देखा गया था।
उजड़े हुए गाँवों से महिलाएँ और पुरुष शहरों की ओर भाग रहे थे। काम करने वाले पुरुषों को सेना में जबरन भर्ती किये जाने से परिवार की सारी जिम्मेदारी महिलाओं के कन्धों पर आ गयी थी। इस कारण महिलाएँ बड़े पैमाने पर कारखानों में मजदूरी करने लगी थीं।
अनाज की कमी के चलते, पेटभर खाना भी नसीब न था। उत्पादन भी उन्हीं चीजों का हो रहा था जिसकी युद्ध में जरूरत थी। इससे महिलाएँ सबसे ज्यादा पिस रही थीं। लोगों में गुस्सा अधिक बढ़ रहा था।
1905 में मजदूरोंकिसानों द्वारा बिना कोई तैयारी किये क्रान्ति की कोशिश को जार ने बुरी तरह से कुचल दिया था। 1917 में मजदूर संगठन वही गलती दोबारा दोहराना नहीं चाहते थे। इसलिए नेताओं ने तय किया कि उस दिन कोई जुलूस या बड़ी हड़ताल नहीं की जायेगी। लेकिन इतिहास की योजना कुछ और ही थी। युद्ध की विभीषिका को सबसे ज्यादा महिलाएँ झेल रही थीं। अनगिनत महिलाओं ने अपने प्रियतमों को युद्ध में खो दिया था। अब नन्हेंबच्चों की जिम्मेदारी भी उनके कन्धों पर ही आ गयी थी। उन्हें इन्तजार करना अब मंजूर नहीं था। 8 मार्च को महिला दिवस मनाने के लिए महिलाएँ इकट्ठा हुर्इं।
कपड़ा उद्योग में काम करने वाली महिलाओं ने तय कर लिया कि वे अब दमघोटू माहौल बदलकर ही दम लेंगी। सेंट पीटर्सबर्ग शहर के सारे उद्योग धड़ाधड बन्द होने लगे। उस दिन की हड़ताल में 90,000 स्त्रीपुरुष शामिल हुए। उन्होंने सिर्फ हड़ताल ही नहीं की बल्कि शहर की ओर जाने वाले रास्तों पर भी जुलूस निकाले। महिलाओं का बहुत बड़ा जुलूस नगरपालिका के सामने आ गया। महत्त्वपूर्ण स्थानों पर लोग इकट्ठा हो गये और नारे लगा रहे थे।
महिला दिवस के दिन महिलाओं द्वारा जलायी गयी यह चिंगारी आग बनकर फैल रही थी। अपना लक्ष्य पाये बिना जनउभार अब रुकने वाला नहीं था। जार और उसके अधिकारियों को भरोसा था कि वे 1905 की क्रान्ति की तरह इस बार भी क्रान्ति को कुचल देंगे। इसलिए जार ने आरक्षित सेना की टुकड़ियों को इस काम के लिए तैनात कर दिया था।
पुराना किस्सा दोहराने के लिए जनता तैयार न थी। आन्दोलन में बड़ी संख्या में शामिल महिलाएँ ये सब सहने के लिए हरगिज तैयार न थी। आन्दोलन को रोकने के लिए तैनात सैनिकों में महिलाओं के पति, भाई और बेटे थे। अपनी जान की परवाह किये बिना वे उन सैनिकों के सामने जाती और उन्हें समझातीं और कहतीं, “देखो। ये सब तुम्हारे अपने हैं। तुम किन पर गोलियाँ बरसाओगे? तुम भी इस लड़ाई में शामिल हो जाओ।ऐसे में अपनी माँबहनों की गुहार का उन पर असर क्यों न होता। देखते ही देखते सेंट पीटर्सबर्ग की सेना जनता की ओर से लड़ने लगी। मजदूर किसानजवान सभी ने मिलकर जार को पराजित कर दिया। क्रान्ति सफल हो गयी।
5 दिनों तक जारी इस संघर्ष के बाद जारशाही बर्खाश्त कर दी गयी। जिसके बाद वहाँ मेहनतकशों का राज कायम हुआ। 8 मार्च, महिला दिवस पर क्रान्ति की नींव रखने वाली रूसी महिलाओं को सलाम।
आज विश्व के लगभग सभी देशों में महिला दिवस मनाया जाता है।
भारत में महिला दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य अपने अधिकारों से अवगत होना, समानता का अधिकार हासिल करना और अपनी मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ना है।
वह दिन अब दूर नहीं जब हमारे देश की महिलाएँ स्वावलम्बी और स्वाधीन महिलाएँ होंगी। समाज के महत्त्वपूर्ण फैसले में उनके नजरियों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जायेगा। सही मायनों में तभी महिला दिवस सार्थक होगा जब महिला अपने महिला होने पर गर्व महसूस करेंगी।
(मुक्ति के स्वर अंक 21, मार्च 2019)

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