क्या तुम जानते हो
पुरुष से भिन्न
एक स्त्री का एकांत?
घर, प्रेम और जाति से अलग
एक स्त्री को उसकी अपनी जमीन
के बारे में बता सकते हो तुम?
बता सकते हो
सदियों से अपना घर तलाशती
एक बेचैन स्त्री को
उसके घर का पता?
उसके घर का पता?
क्या तुम जानते हो
अपनी कल्पना में
किस तरह एक ही समय में
स्वयं को स्थापित और निर्वासित
\करती है एक स्त्री?
सपनो में भागती
एक स्त्री का पीछा करते
कभी देखा है तुमने उसे
रिश्तों के कुरुक्षेत्र में
अपने-आप से लड़ते?
तन के भूगोल से परे
एक स्त्री के
मन की गांठें खोल कर
कभी पढ़ा है
तुमने उसके भीतर का
खेलता इतिहास?
पढ़ा है कभी
उसकी चुप्पी की दहलीज पर बैठकर
शब्दों की प्रतीक्षा के उसके चेहरे को?
उसके अन्दर वंशबीज बोते
उसकी फैलती जड़ों को
अपने भीतर?
क्या तुम जानते हो
एक स्त्री के समस्त रिश्ते का
व्याकरण?
बता सकते हो तुम
एक स्त्री को स्त्री दृष्टि से देखते
उसके स्त्रीत्व की
परिभाषा?
अगर नहीं
तो फिर क्या जानते हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे
एक स्त्री के बारे में...?
-- निर्मला पुतुल
Acchi kavita hai...
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