तुमने कभी युद्ध को देखा है?
उस युद्ध को जो
एक युद्ध निरत योद्धा के
दिल में चलता है!
सरहद में
बंदूकों से चली
हर एक गोली
फाड़ कर निकलती है,
योद्धाओं के पत्नियों का सीना।
एक योद्धा हर बार
वापस घर लौटता है
ऐसे खुश हो जाता है
जैसे पहली बार अपनों को देख रहा हो
और
हर एक बार घर से सरहद को निकलता है,
तब अपनों को वैसे देखता है
जैसे आखरी बार उन्हें देख रहा हो।
जंग के माहौल में
नन्हें मुन्ने बच्चे भी
हत्यारों से खेलते हैं!
जब जब एक बच्चा
अपनी माँ से पूछता है,
'मेरा बाप कहाँ है?'
योद्धाओं की पत्नियाँ
कैलेंडर दिखाती हैं
या फिर आसमान का तारा।
युद्ध में
पाने का नाम खोना है
और खोने का नाम पाना!
सोच लेना
अशोक के भीतर
असल में क्या था।
सरहद पर
खड़ा योद्धा को
सामने और
पीठ पीछे
दोनों तरफ़ दुशमन ही दुश्मन हैं।
और यह बात जिसने लिखी
वह 'देशद्रोही' कहलाएगी।
- मीरा मेघमाला
गोया की युद्ध विरोधी पेंटिंग, साभार |
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