Friday, December 1, 2023

यौन शोषण के आरोपी नेता के खिलाफ महिला पहलवानों का दंगल

 



29 जुलाई को यूपी के गोण्डा में एक कार्यक्रम के दौरान, एक नेता ‘नारी शक्ति’ पर एक भगवाधारी शख्स की कविता को सुनकर मंच पर ही जार–जार रोने लगा। अगले कुछ ही पलों में भारतीय मीडिया में यह खबर छा गयी और सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ आ गयी। यह शख्स कोई और नहीं बल्कि वह भाजपा नेता था जिसको पद से हटाने और उसके अपराधों के लिए सजा दिलवाने के लिए देश के नामी ओलंपिक विजेता पहलवानों को सड़क पर, सरकार और प्रशासन से कुश्ती करनी पड़ी। यह भाजपा नेता बृजभूषण शरण सिंह था जिसके यौन अपराधों के खिलाफ कुछ ही रोज पहले तक देश भर में आवाजें उठ रही थीं और जिसमें सरकार की खूब फजीहत हुई।

यह कोई पहली घटना नहीं है, भारतीय राजनीति में ढोंग के ऐसे कई सार्वजनिक किस्से मौजूद हैं। भारत के नये संसद भवन के उद्घाटन के दिन भी इसी भाजपा नेता पर कार्रवाई की माँग को लेकर पहलवानों ने प्रदर्शन किया था। यह सब उस वक्त हो रहा था, जब बृज भूषण सिंह अपने पद पर जमे रहने की न केवल वकालत कर रहा था, बल्कि सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ मुस्कुराते हुए नजर आ रहा था मानो पूरी व्यवस्था का माखौल उड़ा रहा हो, कि जिसे जो करना है कर ले, वह तो देश की संसद का हिस्सा है, कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यह अपने आप में भारतीय व्यवस्था के लिए शर्मनाक क्षण था।

इस घटना से पहले जनवरी 2023 में भारत की चोटी की महिला पहलवानों ने दिल्ली के जंतर मंतर में एक दिन का धरना प्रदर्शन किया था। इस धरने में मुख्य रूप से अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहलवान साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया, संगीता फोगाट समेत कई पहलवान शामिल हुए। धरना प्रदर्शन करने के पीछे कारण था कि भाजपा नेता और भारतीय कुश्ती महासंघ का अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह लम्बे वक्त से महिला पहलवानों का शारीरिक और मानसिक शोषण कर रहा था। पहलवानों ने इसके खिलाफ शिकायत करने की कोशिश भी की, लेकिन इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई। यहाँ तक कि पहलवानों ने प्रधानमंत्री कार्यालय में अपना शिकायत पत्र भी भेजा था!

जब कहीं सुनवाई नहीं हुई और प्रधानमंत्री कार्यालय से भी इस मामले में संज्ञान नहीं लिया गया, तब थक–हार कर पहलवानों ने एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया। इस घटना ने देश भर का ध्यान खींचा, सिवाय सरकार के। पहलवानों को जनवरी में आश्वासन मिला कि वह अपना धरना खत्म कर दें और जल्दी ही इस मामले की उच्च स्तरीय जाँच की जायेगी। इस मामले की जाँच के लिए एक विशेष जाँच कमेटी भी बनी।



इस पूरे प्रकरण में पहलवानों की मुख्य माँगे थीं– बृजभूषण शरण सिंह की तत्काल गिरफ्तारी और कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद से उसकी बर्खास्तगी। पहलवानों ने पीड़ित लड़कियों के बयानों पर तुरन्त सुनवाई की माँग भी रखी थी, ताकि भाजपा नेता अपने पद का फायदा उठाकर पीड़िताओं को प्रभावित न कर सके।

पीड़ित लड़कियों ने जाँच कमेटी के सामने अपने साथ हुई घटना की गवाही जनवरी में ही दे दी थी, लेकिन सांसद अपने रसूख के चलते बचा रहा। इसी बीच ये खबरें भी सामने आयीं कि पीड़ित लड़कियों और उनके परिवार वालों को डराया–धमकाया जा रहा है और धरना देने वाले पहलवानों को जान से मारने की धमकी तक दी जा रही है। वक्त निकलता गया लेकिन पहलवानों के आरोपों पर कार्रवाही के बजाय, सरकार ने ध्यान देना ही बन्द कर दिया। जब 3 महीने तक इस मामले में आरोपी बृजभूषण पर कार्रवाही नहीं की गयी और न ही उसके खिलाफ दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज की तो दोबारा 23 अप्रैल को पहलवानों ने जंतर–मंतर पर अपना अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया।

धरने पर बैठे पहलवानों के प्रदर्शन के बाद सुप्रीम कोर्ट को खुद आगे जाकर दिल्ली पुलिस को आदेश देना पड़ा, तब जाकर कहीं दिल्ली पुलिस ने आनन–फानन में आरोपी सांसद के खिलाफ एफआईआर दर्ज की लेकिन उसके बाद भी आरोपी बृजभूषण के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने कोई जाँच शुरू नहीं की। इसके उलट मीडिया ने इस घटना को जाट बनाम राजपूत की राजनीति में बदलने का भरकस प्रयास किया और महिला पहलवानों को ही सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया। पहलवानों पर आरोप लगाये गये कि वह कुश्ती में सिर्फ जाटों का दबदबा चाहते हैं और कुश्ती महासंघ का अध्यक्ष कोई जाट बने, यही उनकी मंशा है। यह अपने आप में ही हास्यास्पद बात थी, यहाँ तक कि यह कह दिया गया कि यह प्रदर्शन सिर्फ फोगाट परिवार का है, और इस मामले से अन्य महिला पहलवानों का कुछ लेना–देना नहीं है। इस दौरान दिनभर टीवी भाजपा नेता के पक्ष में माहौल बनाते दिखा। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने जरूर पड़ताल करने की कोशिश की, लेकिन सरकार चुप्पी साधे रही। ऐसा लग रहा था मानो देश में दो तरह के कानून चलते होंगे, एक कमजोर के लिए हैं और दूसरा रसूखदार लोगों के लिए। बृजभूषण शरण सिंह के मामले ने देश के असहाय नागरिकों को कुछ ऐसा ही सन्देश अब तक दिया है।

पहलवानों पर यह आरोप भी लगाये गये कि वह सिर्फ बृजभूषण को बदनाम करने तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा में बिना ट्रायल के शामिल होने के लिए पूरा माहौल बना रहे हैं। इतना ही नहीं, खिलाड़ियों पर यह आरोप भी जड़े गये कि महिला पहलवान राष्ट्रीय स्तर के खेलों में भाग ही नहीं लेना चाहतीं। जबकि प्रदर्शनकारियों का कहना था कि बृजभूषण शरण सिंह सांस की जाँच के बहाने उनके शरीर को गलत तरीके से छूता है और कई लड़कियों को अकेले में अपने कमरे में आने का दबाव बनाकर, उनका यौन शोषण करता है। इतने संगीन आरोपों के बावजूद यह नेता बेशर्मी से ये बार–बार पद न छोड़ने की बात पूरी ठसक से कहता रहा।

लड़कियों ने खुद इस बात की गवाही दी है कि बृजभूषण शरण सिंह जबरदस्ती उनको भींच कर गले लगा लेता था, जिससे वह इतनी असहज हो जाती थीं कि वह अपने टूर्नामेंट के दौरान खाना खाने तक के लिए समूह में जाती थीं। ऐसा वह इसलिए करने लगीं ताकि आरोपी से वह अकेले में मिलने से बच सकें। इस प्रकरण ने कई नाटकीय मोड़ लिए, यहाँ तक कि सांसद ने अपने पक्ष में संतों की रैली निकलवाने तक की तैयारी कर ली थी, जिससे इस मामले को धार्मिक रंग दिया जा सके।

महिलाओं का यह संघर्ष एक ऐसे समाज में चल रहा है जहाँ मर्द होना ही अपने आप में ताकतवर पद है। ऐसे में बृजभूषण शरण सिंह, जो कि उत्तर प्रदेश से 6 बार सांसद रह चुका है, कितना ताकतवर शख्स होगा, इसका अन्दाजा लगाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। मामला सिर्फ इतना ही नहीं है कि इस नेता पर महिला पहलवानों ने आरोप लगाये हैं बल्कि सांसद के अपराधों की एक पूरी लम्बी फेरहिस्त पहले से मौजूद है। उसके खिलाफ पहले से अलग–अलग मामलों में 38 मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें अपहरण से लेकर हत्या तक के संगीन मामले शामिल हैं। इन मामलों की सूची पहलवानों के धरना स्थल पर भी टंगी हुई थी लेकिन सरकार और पुलिस को वह शायद दिखाई नहीं दी।

बृजभूषण की ताकत का अन्दाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उसका बेटा और दामाद भी अलग–अलग कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं। इतनी बड़ी राजनैतिक हस्ती के खिलाफ मुँह खोलना अपने आप में एक बहुत बड़ा और साहसिक कदम है, जिसमें पहलवानों का भविष्य तक दाँव पर लगा हुआ है। ऐसे मामले की जाँच यदि सही ढंग से की जाये तब किसी भी ऐसी संवेदनशील घटना पर सबसे पहले ताकतवर इनसान से सवाल होना चाहिए था, क्योंकि वह अपनी ताकत का इस्तेमाल कर कमजोर को आसानी से प्रभावित कर सकता है। लेकिन यहाँ सब कुछ उल्टा ही देखने को मिला। महिला पहलवानों की न केवल चरित्र–हनन करने की कोशिशें की गयी, बल्कि बृजभूषण को ऐसे पेश किया गया मानो इस शख्स की इन घटिया हरकतों ने ही खिलाड़ियों को पदक पाने में योगदान दिया हो! यही नहीं, नेता पर महिला पहलवानों ने स्टेरॉयड उपलब्ध करवाने के बदले शोषण के आरोप तक जड़े हैं।

भारत सरकार ने जब इस मामले को दबाने की कोशिश की तब अन्तरराष्ट्रीय कुश्ती संघ तक को बयान जारी करना पड़ा, (और अब तो भरतीय कुश्ती संघ की मान्यता रद्द कर दी गयी है) लेकिन बावजूद इसके यौन शोषण के आरोपी सांसद के खिलाफ सरकार की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। यह सब उस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हो रहा है, जो मंचों से ‘बेटी बचाआ–बेटी पढ़ाओ’ के नारे लगाता है।

भारत में पहलवानी का इतिहास देखें तो पायेंगे कि यह सदियों से एक मर्दाना खेल रहा है। ऐसे में हरियाणा जैसा राज्य, जहाँ सबसे ज्यादा कन्या भ्रूण हत्या होती है, इज्जत के नाम पर लड़कियों की हत्या जैसी कुप्रथा पहले से ही समाज में फैली है, लड़कियों को पर्दे में और चारदीवारी में कैद करके रखना जिस समाज की संस्कृति हो, वहाँ से लड़कियों का कुश्ती जैसे खेल में उतरना अपने आप में संघर्ष भरा कदम रहा है।

ऐसे में जब लड़कियाँ यौन–शोषण जैसे घिनौने अपराध का सार्वजनिक मंच से ब्यौरा देंगी तो क्या हमारा पिछड़ा समाज आगे अपनी बेटियों को ऐसे खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करेगा? हमारे समाज में महिलाओं के साथ यौन शोषण जैसे अपराध बहुत ही आम हो गये हैं, ऐसे में बहुत सारे लोग लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए कराटे, पहलवानी या मार्शल आर्ट सिखाने की सलाह देते हैं, लेकिन ये लड़कियाँ तो ओलंपिक मेडल विजेता हैं और बावजूद इसके उन्हें यह सब झेलना पड़ रहा है। विनेश फोगाट पहली भारतीय महिला है जिसने कॉमनवेल्थ और एशियन चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीते हैं और ढेर सारे विश्व चैम्पियनशिप में भाग लिया है। साक्षी मलिक ओलंपिक खेल विजेता हैं। अब सोचिए कि जब चोटी के खिलाड़ियों के लिए न्याय माँगना आज इतना कठिन हो गया है तो अन्दाजा लगाना मुश्किल नहीं कि किसी गली–मोहल्ले की आम लड़कियों को पुलिस–प्रशासन न्याय दिलवाने में क्या भूमिका अदा करता होगा?

विजेता पहलवानों को लगा होगा कि अब वह इस मुकाम पर हैं कि अपनी आवाज उठाएँगी तो जनता और सरकार उनका साथ देगी, लेकिन इसके उलट उनके धरना स्थल को 28 मई के दिन पुलिस ने तबाह कर दिया और महिला पहलवानों को सड़कों पर घसीट कर अस्थाई तौर पर बन्दी बना लिया। इस सबसे तंग आकर प्रदर्शनकारी अपने जीते हुए मेडल गंगा में प्रवाहित करने तक चले गये थे।

भारत जैसे देश जहाँ पुरुषवादी समाज के कारण लड़कियों के पास पहले से ही अवसरों की कमी है, ऐसे में इस तरह की घटनाएँ उन्हें मानसिक तौर पर तोड़ने का काम करती हैं। महिला पहलवानों के लिए उनकी शारीरिक बनावट रुकावट नहीं बनी बल्कि पितृसत्तात्मक समाज ही असली गुनहगार साबित हो रहा है। एक तरफ जहाँ इन महिला पहलवान की उपलब्धियों को देख भारत में पिछले कुछ सालों में कुश्ती न केवल लोकप्रिय हुयी है बल्कि आज कई अन्य राज्यों में भी महिलाएँ इस खेल से जुड़ती चली जा रही हैं। आज हरियाणा महिला पहलवानों का गढ़ बना हुआ है तो उसमें इन महिला पहलवानों का आगे निकलकर आना और उपलब्धियाँ हासिल करना एक मजबूत कारण है। ऐसे में यौन शोषण जैसी शर्मनाक घटना आने वाली लड़कियों के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है।

इन सब में सबसे शर्मनाक रवैया सरकार का रहा है जिसने यौन शोषण के आरोपी के साथ खड़े होकर बेशर्मी का परिचय दिया है। हालाँकि सरकार की बेशर्मी जाहिर करने वाला यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कठुआ से लेकर उन्नाव और हाथरस की घटनाओं में सत्ताधारी पार्टी ने पूरी बेशर्मी से अपने लोगों को न केवल बचाया, उल्टा पीड़ितों को बदनाम करने की कोशिश की। कठुआ में जहाँ आरोपी के पक्ष में तिरंगा रैली निकालकर माहौल बनाया गया, वहीं गुजरात में बिलकिस बानो के बलात्कार के सजायाफ्ता अपराधियों को छोड़ने पर फूल–मालाओं से उनका स्वागत किया गया। यह कुछ ऐसी घटनाएँ हैं जिन्होंने कई गम्भीर सवाल पैदा किये हैं। इन मामलों को देखकर कहा जा सकता है कि भारत में अदालतों और तमाम कानूनों के बावजूद न्याय की लड़ाई लड़कियों के लिए अभी भी बहुत कठिन और लम्बी है लेकिन अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए यह लम्बी लड़ाई हमें जारी रखनी होगी, क्योंकि बिना संघर्ष के किसी को कुछ नहीं मिलता।

पाश के शब्दों में–

हम लड़ेगें जब तक

दुनिया में लड़ने की जरूरत बाकी है

हम लड़े़गें

कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता

हम लड़ेगें

कि अब तक लड़े क्यों नहीं

हम लड़ेगें साथी!

–– स्वाति सरिता 

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