Wednesday, November 29, 2023

संविधान में महिलाएँ


आज के दौर में महिलाएँ किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। घर हो या बाहर
, महिलाएँ अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं, लेकिन हमारे देश में सामन्ती संस्कारों के चलते आज भी महिलाओं को पुरुषों से कम आँका जाता है, उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार होता है। यही नहीं यहाँ हर मिनट एक महिला किसी न किसी अपराध का शिकार होती है। फिर चाहे वो अपना घर हो, ऑफिस या सार्वजनिक स्थल, उनकी सुरक्षा हमेशा हाशिये पर होती है। आज भारत महिलाओं के लिए असुरक्षित देशों की सूची में सर्वप्रथम स्थान पर है।

महिला होने के चलते उन्हें अनेक परेशानियों से गुजरना पड़ता है। ऐसे में जरूरी है कि महिलाएँ अपने हित के कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी रखें, ताकि किसी भी तरह की हिंसा, उत्पीड़न होने पर उसके खिलाफ अपनी आवाज उठा सकें।

आइए हमारे देश में महिलाओं के संरक्षण हेतु बनाए गये कुछ कानून और अधिकारों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं––

घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क महिलाओं को उनके पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा की जाने वाली क्रूरता के लिए, चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक, दण्ड का प्रावधान करता है।

इसके अलावा घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 प्रत्येक महिला को संरक्षण प्रदान करता है, चाहे वह महिला पत्नी, पुत्री, माता, या कोई अन्य हो। महिलाओं के प्रति उनके घर में होने वाले अपराधों से संरक्षण देने हेतु अनेक अधिनियम पारित हुए जैसे– दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, हिन्दू विवाह अधिनियम। यह सभी अधिनियम प्रत्येक रूप में एक महिला को अधिकार व संरक्षण प्रदान करते हैं।

सम्पत्ति में अधिकार

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अन्तर्गत पिता की पैतृक सम्पत्ति में पुत्री का भी अधिकार होता है। पति की अर्जित सम्पत्ति में पत्नी का बराबर का अधिकार होता है और यदि पत्नी तलाक ले रही है तो पति को मिली विरासत की सम्पत्ति में पत्नी का पति के बराबर अधिकार होता है।

नि:शुल्क कानूनी सहायता

अगर किसी महिला को किसी अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है और वह कानूनी सहायता की माँग करती है, तो उसे नि:शुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध करायी जायेगी चाहे वह आर्थिक रूप से सम्पन्न ही क्यों न हो। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 39अ में और विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 12 में प्रावधान किया गया है।

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ कानून

हमारे देश में महिलाओं की कम होती संख्या को देखते हुए सन् 1994 में लिंग प्रतिषेध अधिनियम पारित किया गया, जिसके अनुसार जन्म से पूर्व शिशु का लिंग ज्ञात करना अपराध है, क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य गर्भ में पल रही बालिका की हत्या करना होता है।

अवैध गर्भपात के खिलाफ कानून

इसके लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 पारित किया गया। इस कानून के अनुसार विशेष परिस्थितियों जिनमें शिशु या माँ या दोनों की जान को खतरा हो या शिशु विकलाँग हो या गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो तभी पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भपात कराया जा सकता है अन्यथा नहीं। अवैध गर्भपात को रोकने के लिए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 312 से 318 में भी उपबन्ध किये गये हैं।

इस अधिनियम में वर्ष 2021 में संशोधन किये गये। नये नियमों के अनुसार अब कोई भी गर्भवती महिला चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, वह गर्भ के 0 से 20 हफ्ते तक के अन्दर गर्भपात करवा सकती है। गर्भवती महिला को अपनी पहचान गोपनीय रखने का अधिकार है। इसके ज्यादा उम्र के गर्भ को गिराने के लिए विशेष नियम हैं, क्योंकि इसके बाद गर्भ गिराने में महिला की जान तक जाने का खतरा होता है।

महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व (रोकथाम) अधिनियम 1986

यह अधिनियम विज्ञापन के माध्यम से या प्रकाशनों, लेखन, चित्रों या किसी अन्य तरीके से महिलाओं के अशोभनीय प्रतिनिधित्व पर रोक लगाता है।

इन्टरनेट पर सुरक्षा का अधिकार

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 और 66ई में यह प्रावधान किया गया है कि किसी महिला के निजी तस्वीरों को उसकी अनुमति के बिना प्रचारित करना अपराध है।

कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ उत्पीड़न के विरुद्ध अधिकार

अगर किसी महिला के साथ उसके ऑफिस में या किसी भी कार्यस्थल पर शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न किया जाता है तो वह उत्पीड़न करने वाले आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है। यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत महिलाओं को कार्यस्थल पर होने वाली शारीरिक या यौन उत्पीड़न से सुरक्षा मिलती है। इसके लिए ‘पॉश कमेटी’ गठित की गयी। यह कानून सितम्बर 2012 में लोकसभा और 26 फरवरी 2013 में राज्यसभा में पारित हुआ।

भारतीय तलाक अधिनियम, 1969

भारतीय तलाक अधिनियम के तहत न सिर्फ पुरुष बल्कि महिला भी विवाह को खत्म कर सकती है। पारिवारिक न्यायालय ऐसे मामलों को दर्ज करने, सुनने ओर निपटाने के लिए स्थापित किये गये हैं।

समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976

इस अधिनियम के तहत एक ही तरह के काम के लिए महिला और पुरुष दोनों को मेहनताना भी एक जैसा ही मिलना चाहिए। यानि यह पुरुषों और महिला श्रमिकों को समान पारिश्रमिक के भुगतान का प्रावधान करता है। यह अधिनियम 8 मार्च 1976 को पास हुआ था।

मातृत्व अवकाश का अधिकार

इसके लिए सन् 1961 में मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट बनाया गया जिसे सन् 2017 में संशोधित किया गया। इसके तहत किसी भी निजी या सरकारी संस्थान में कार्य करने वाली महिला को बच्चे के जन्म के समय 6 माह का सवैतनिक अवकाश मिलता है। यह कानून हर सरकारी और गैर सरकारी कम्पनी पर लागू होता है। इसके अतिरिक्त बच्चे के 18 साल के होने तक माँ कभी भी 2 साल की सवेतन चाइल्ड केयर लीव ले सकती है।

राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम

भारत सरकार द्वारा 31 जनवरी 1992 को संसद के एक अधिनियम के तहत राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गयी। कोई भी महिला अपनी परेशानी यहाँ दर्ज करवा सकती है। साथ ही यदि महिलाओं के किसी भी अधिकार का उल्लंघन हो रहा हो तो भी नेशनल कमीशन फॉर विमेन से मदद ली जा सकती है। राष्ट्रीय महिला अधिनियम आयोग का उद्देश्य महिलाओं की स्थिति में सुधार करना व उनके आर्थिक सशक्तिकरण हेतु काम करना है।

गिरफ्तारी से सम्बन्धित अधिकार

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 46(4) में किसी महिला की गिरफ्तारी के सम्बन्ध में उपबन्ध किये गये हैं। इसके अनुसार विशेष परिस्थिति के अलावा, किसी महिला को सूर्यास्त के पश्चात और सूर्याेदय से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और यदि ऐसा करना आवश्यक है तो इसके लिए महिला पुलिस अधिकारी द्वारा प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की लिखित अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य होगा।

इसके अतिरिक्त बलात्कार की पीड़ित महिला को अपनी पहचान गोपनीय रखने का अधिकार है। बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों की रोकथाम के लिए स्पेशल ‘पास्को एक्ट’ बनाया गया है और महिलाओं को अधिकार है कि वे अपने साथ हुए अपराध की शिकायत किसी भी थाने में कर सकती हैं। पुलिस अधिकारी उनसे यह नहीं कह सकते कि वह उनकी स्थानीय आधिकारिकता में नहीं आता। महिलाओं को अपने साथ हुए अपराध की शिकायत को निर्धारित समय सीमा के बाद भी करने का अधिकार है। महिलाओं को सीआरपीसी की धारा 125 के अर्न्तगत भरण–पोषण का अधिकार है।

यह दुखद सच्चाई है कि इतने कानूनों के रहते, आज महिलाओं का शोषण–उत्पीड़न चरम पर है। कानून कागजों में ही सीमित हैं। फिर भी, महिलाओं से जुड़े अधिकारों का ज्ञान होना प्रत्येक महिला के लिए अति आवश्यक है जिससे वह अपने अधिकारों के प्रति सजग रहे। अब वक्त आ गया है जब महिलाओं को जरूरत पड़ने पर अपने संकोच को दरकिनार करते हुए इन अधिकारों का उपयोग करना चाहिए।  


–– आकांक्षा यादव

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