अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर पढ़िए और सुनिए- किश्वर नाहीद की नज़्म- वो जो बच्चियों से भी डर गये.
"वो जो बच्चियों से भी डर गये,
वो जो इल्म से भी गुरेज पा
करे ज़िक्र रब्बे-करीम का
वो जो हुक्म देता है इल्म का
करे उस के हुक्म से मावरा, ये मुनादियाँ
न किताब हो किसी हाथ में
न ही उँगलियों में कलम रहे
कोई नाम लिखने की जा न हो
न हो रस्मे-इज़्में-सना कोई.
वो जो बच्चियों से भी डर गये
करे शहर-शहर मुनादियाँ
कि हरएक कद्दे-हयानुमा को नकाब दो
कि हरएक दिल के सवाल को ये जवाब दो
नहीं चाहिए उन्हें बच्चियाँ
उड़ें ताईरों की तरह बुलंद
नहीं चाहिए कि ये बच्चियाँ
कहीं मदरसों, कहीं दफ्तरों का भी रुख करें
कोई शोला रु, कोई बासफा हैं कोई
तो सहने-हरम ही उसका मक़ाम है
यही हुक्म है ये कलाम है.
वो जो बच्चियों से भी डर गये
वो यहीं कहीं हैं करीब में
इन्हें देख लो इन्हें जान लो
नहीं इनसे कुछ भी बाईद शहरे-जवाल में
रखो हौसला रखो ये यकीं
के जो बच्चियों से भी डर गये
वो हैं कितने छोटे वजूद में."
किश्वर नाहिद की आवाज़ में सुनिए उनकी नज़्म-
इस लिंक पर जाइये.
http://www.youtube.com/watch?v=u92keHHTouY
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http://www.youtube.com/watch?v=u92keHHTouY
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