लव जिहाद- पिछले चार-पांच सालों से यह शब्द खूब चर्चाओं में रहा है। लव यानी कि प्यार और जिहाद जिसका मतलब इतिहास में ‘धर्म युद्ध’ बताया गया है। दोनों ही शब्द आपस में मेल नहीं खाते। प्यार बहुत ही सरल, साधारण और प्राकृतिक मानवीय भाव है। जहां लव हो वहां जिहाद नहीं हो सकता और जहां जिहाद हो वहां प्यार नहीं हो सकता।
हाल ही में उत्तर प्रदेश में लव जिहाद का अध्यादेश प्रभावी हो गया है। राज्यपाल ने गैरकानूनी तरीके से धर्मांतरण पर रोक से जुड़े अध्यादेश को मंजूरी दे दी। इससे पहले मध्य प्रदेश सरकार लव जिहाद पर कानून लाने की तैयारी कर चुकी है। हरियाणा, कर्नाटक और कई अन्य बीजेपी शासित राज्यों में भी लव जिहाद पर कानून लाने की कवायद चल रही है। कानून के मुताबिक, जबरदस्ती प्रलोभन से किया गया धर्म परिवर्तन संज्ञेय और गैर जमानती अपराध होगा। इस कानून को तोड़ने पर कम से कम ₹रु 15,000 जुर्माना और 1 से 5 साल तक की सजा होगी। यही काम नाबालिक या अनुसूचित जाति, जनजाति की लड़की के साथ करने में ₹रु 50,000 जुर्माना और 3 से 10 साल तक की सजा होगी। धर्म परिवर्तन के लिए तयशुदा फॉर्म भर कर दो महीने पहले जिला अधिकारी को देना होगा।
नए कानून के मुताबिक आपको साबित करना होगा कि आपका रिश्ता जबरन धर्म परिवर्तन या किसी प्रलोभन के तहत नहीं है। जब तक यह साबित होगा तब तक क्या लड़का-लड़की सुरक्षित होंगे? उनकी जान को कोई खतरा नहीं होगा, इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? लोग उन्हें चरित्र का सर्टिफिकेट नहीं देंगे इसकी क्या गारंटी होगी? इस जांच के दौरान कभी न भरने वाली जो मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक चोट पहुंचेगी उसका जिम्मेदार कौन होगा? क्या किसी को पसंद करना और अपने हिसाब से जिंदगी बिताना कोई पाप है? क्या धर्म इतना कमजोर होता है कि शादी करने से खतरे में पड़ जाता है?
यदि हम अपने आसपास मौजूद जोड़ों जो दो अलग-अलग धर्म से वास्ता रखते हों, के वैवाहिक जीवन को देखने की कोशिश करें तो हम पायेंगे कि उनका जीवन आमतौर पर अच्छा ही चल रहा होता है। दोनों के परिवारों द्वारा देर सबेर वे स्वीकार ही कर लिए जाते है और मिलकर खुशनुमा जीवन जी रहे होते हैं। उनके जीवन में संकट और मुसीबत तब आने लगती है जब बाहर से कोई पार्टी, समुदाय या कोई संगठन निजी, धार्मिक या चुनावी स्वार्थ के लिए उनके जीवन में गैर-जरूरी हस्तक्षेप करने लगे और अचानक किसी एक धर्म पर आये संकट के रूप में उसे प्रस्तुत करने लगे।
भारत सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधताओं से भरा देश है। हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान लिखने से पहले सारे पहलुओं के बारे में सोच समझकर ही संविधान रचा। हमारा संविधान हमें अपनी पसंद से रहने, कहीं भी बसने, नौकरी करने, जीवनसाथी चुनने और यहां तक कि धर्म चुनने या छोड़ने का अधिकार भी देता है। इसमें दो अलग-अलग धर्मों की शादी के लिए ‘स्पेशल मैरिज एक्ट’ का प्रावधान भी दिया गया है। ऐसे में इस नए कानून की जरूरत है भी या ये सिर्फ नफरत के शतरंज को जीतने का एक मोहरा भर है।
भारत में तो सदियों से विभिन्न नस्लें और विभिन्न धर्मों के लोग आकर बसते रहे हैं। भारत की धरती और हमारे पुरखों ने बाहें फैलाकर उन्हें अपनाया है। हमारा संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है, जिसमें राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता, राज्य धार्मिक मामलों से अलग रहता है और धर्म नागरिकों का निजी मसला माना जाता है। हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्राप्त है। ऐसे में यह कानून न सिर्फ व्यक्ति के धार्मिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि राज्य के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर भी चोट करता है।
लव जिहाद कानून का सबसे पहला केस जो सामने आया है वह है पिंकी और राशिद का। पिंकी और राशिद देहरादून में नौकरी करते थे, दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। पिंकी ने शादी का प्रस्ताव रखा और दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद पिंकी ने इस्लाम को अपना लिया और अपनी इच्छा से नाम बदलकर मुस्कान रख लिया। कुछ दिनों बाद उन दोनों को धमकी भरे फोन आने लगे जिसमे उन्हें अलग करने से मौत तक कि धमकी शामिल थी। मुस्कान ने देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को मदद के लिए पत्र लिखा और मदद की मांग की।
कोरोना के चलते दोनों के ऑफिस बंद हो गए तो फिर वे लौटकर राशिद के गांव मुरादाबाद आ गए। थोड़े दिन बाद मुस्कान को पता चला कि वो मां बनने वाली है। दोनों अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करने के लिए अपनी शादी रजिस्टर करवाने कोर्ट में गए और वापसी में बजरंग दल के सदस्यों ने उन्हें रोक लिया। उन्होंने पूछताछ करने के बाद नए कानून के तहत दोनों को थाने ले जाकर पुलिस के हवाले कर दिया।
मुस्कान गिडगिडाती रही कि वह मां बनने वाली है मगर उसकी एक न सुनी गई। राशिद और उसके भाई को जेल में डाल दिया गया, वही मुस्कान को जबरदस्ती नारी निकेतन में भेज दिया गया। नारी निकेतन के बारे में वह कहती है कि वह किसी जेल से कम नहीं था। वहां ऊंची-ऊंची दीवारें हैं ताकि बाहर का कुछ भी दिखाई ना दे और दीवारों में चारों ओर से तार की बाड़ थी। उस नारी निकेतन में मुस्कान के अलावा 35-40 और लड़कियां थी। दो दिन वहां रहने के बाद उसे पेट में दर्द महसूस हुआ तो उसे हॉस्पिटल ले जाया गया। वहां उसे बिना किसी जानकारी के दवाई और इंजेक्शन दिए जाने लगे। मुस्कान का गर्भ 3 महीने का था अब तक उसे कोई परेशानी नहीं हुई थी, अचानक उसको खून बहने लगा। मुस्कान ने अपना बच्चा खो दिया था। उसे न कुछ बताया गया और न ही कोई रिपोर्ट दी गयी। एक इंटरव्यू में मुस्कान ने बताया कि उसका जबरन गर्भपात करवाया गया है।
धारा 312, 313 और 315 के मुताबिक यदि कोई भी व्यक्ति मां की अनुमति के बिना उसका गर्भपात करवाता है या बच्चे को कोख में ही मारने की कोशिश करता है तो संबंधित व्यक्ति को दंडित किया जाएगा। मुस्कान गिडगिडाती रही कि उसके बच्चे को मारा गया है लेकिन इस बात पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया। जिस समाज में हजारों बलात्कारों को आसानी से हज़म कर दिया जाता है वहां इनसे एक प्रेम विवाह हज़म नहीं होता है।
भारत जैसे आजाद देश में जहां आजादी के लिए इतने बलिदान दिए गए हो, लड़कर अपना हक, आजादी, बराबरी, सम्मान और फैसले लेने का मौलिक अधिकार हासिल किया गया हो वहां अपने इतिहास को ठुकरा कर दोबारा से गुलामी और सामंतवादी वक्त में हमें लौटाया जा रहा है। इन सभी लोगों को इतिहास उठा कर पढ़ लेना चाहिए जो दूसरों के मसीहा बनते हैं और खुद को पूरे भारत के केयरटेकर समझते हैं। हमारे इतिहास में औरतों ने आजादी की लड़ाई में बराबर साथ दिया है। भारतवर्ष के निर्माण में उनकी भी पूरी भागीदारी है। देश में जितना हक एक पुरुष का है उतना ही एक महिला का भी है। ऐसे में किसी पुरुष को किसी महिला के फैसले लेने का कोई अधिकार नहीं है।
नए कानून के समर्थन में लोग कहते हैं कि ये हिंदू लड़कियों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। ऐसे में कोई उन्हें बेवकूफ नहीं बना पाएगा। सवाल ये है कि क्या हिंदू लड़कियां इतनी बेवकूफ है कि 2020 में भी अपने फैसले खुद नहीं ले सकती हैं? क्या उनके मां-बाप ने उन्हें समझदार नहीं बनने दिया? क्या उनके पालन-पोषण में कोई कमी रह गई? क्या उनके दिमाग का विकास नहीं हो पाया है? क्या वे अब भी गुलाम है? क्या वो आपके हाथों की कठपुतलियां हैं? इन प्रश्नों का जवाब सिर्फ यही हो सकता है – नहीं।
-शालिनी
विचारोत्तेजक
ReplyDelete