Saturday, January 2, 2021

क्रान्ति ज्योती सावित्रीबाई फुले के जन्म दिवस पर



बहनो,
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था, उन्हें याद करते हुए हमारे दिमाग में यह सवाल उठना लाजमी है कि जो सपना उन्होंने महिलाओं के लिए लगभग डेढ़ सौ साल पहले देखा था वह आज भी पूरा हुआ या नहीं?
सावित्रीबाई फुले हमारे देश की पहली महिला शिक्षिका थीं। उन्होंने महिलाओं के पढ़ने-लिखने और आत्मनिर्भर बनने पर जोर दिया था। इसके लिए उन्होंने जगह-जगह महिला स्कूल खोलें। अपने जीवन काल में उन्होंने लगभग 18 स्कूल खोलें थे। इस काम के लिए उन्हें समाज के ऐसे लोगों से संघर्ष करना पड़ा जो बेहद पिछड़ी सोच रखते थे। ये लोग लड़कियों को पढ़ाना-लिखाना तो दूर, उनका घर से बाहर निकलना भी बंद कर देते थे। महिलाओं को शिक्षित करने के काम पर वे ताने कसते थे, ऐसे लोगों के तानों और हमलों से लड़ते हुए उन्होंने अपने सपने को आगे बढ़ाया। स्कूल जाते समय रास्ते में ये लोग उन पर कीचड़, गोबर और पत्थर फेंकते थे। वह थैली में दूसरी साड़ी लेकर चलती और स्कूल जाकर साफ साड़ी पहनकर पढ़ाया करती थी। वह कहती कि उन पर फेंके गए कीचड़, पत्थर उनके लिए फूल हैं जो उनकी हिम्मत और बढ़ा देते हैं। ऐसे हौसले वाली थी सावित्रीबाई।
सावित्रीबाई का सपना केवल लड़कियों को पढ़ाना-लिखाना भर नहीं था बल्कि ऐसा समाज बनाना था, जिसमें महिलाएँ अपनी गुलामी को पहचाने, अपने बन्धनों को तोड़कर समाज में अपनी पहचान बनायें। उनका मानना था कि पिछड़ेपन का कारण अज्ञानता है, इसलिए ज्ञान पाकर ही अपने को गुलामी के बंधन से मुक्त कर सकते हैं।
सावित्रीबाई अपने समय की एक महान समाज सुधारक थीं। उन्होंने विधवा आश्रम और शिशुपालन केन्द्र खोला, विधवा पुनर्विवाह आन्दोलन चलाया, जातीय बंधन तोड़ने के लिए अंतरजातीय विवाह पर जोर दिया, अस्पताल खुलवायें। सावित्रीबाई जीवन भर संघर्ष करती रहीं। अपना पूरा जीवन उन्होंने समाज की सेवा में लगा दिया। वह हमारे लिए पथ-प्रदर्शिका और हमारी आदर्श महिला हैं, जिन्होंने समाज में क्रान्ति की ज्योत जलायी।
लेकिन आज भी सावित्रीबाई फुले के सपने साकार नहीं हुए हैं। बाबासाहेब अम्बेडकर ने कहा था कि "मैं किसी भी समाज की प्रगति का अनुमान इस बात से लगाता हूँ कि उस समाज की महिलाओं की कितनी प्रगति हुई है।" इस हिसाब से आज भी हमारा समाज बहुत पिछड़ा है क्योंकि महिलाओं की हालत बहुत खराब है। महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की बनी हुई है। लड़कियों को लड़कों के समान शिक्षा और उन्नति का अवसर प्राप्त नहीं मिलता। हमारे समाज में लड़के और लड़कियों के बीच गैर बराबरी मौजूद है। लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार की घटनाएँ तेजी से बढ़ती जा रही हैं। सावित्रीबाई फुले का सपना था कि समाज में लड़कियाँ पढ़-लिख कर आत्मनिर्भर बने लेकिन आज भी लड़कियाँ शिक्षा पाने से कोसों दूर हैं। उनके द्वारा शुरू की गई मुहिम को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी आज हमारे कंधों पर है।
साथियो, सावित्रीबाई फुले के जन्म दिवस पर विचार गोष्ठी आयोजित की जाए। जिससे लोग उनके विचारों को जानने-समझने, जन-जन तक पहुंचने और अपने जीवन में उतारने के लिए आगे आयें!

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