पढ़ती हुई लड़कियां
संगीनों से नहीं डरती हैं
सैनिकों से नहीं डरती हैं
बाग़ी होती हैं
पढ़ती हुई लड़कियां
समाज से नहीं डरती
देह की देहरी
और घर की मुंडेर तक नहीं टिकती
नियम, कायदे और वर्जनाएं लांघ जाती हैं
पढ़ती हुई लड़कियां
अकेले कहां कहां न दनदनाती हैं
उनसे ज़्यादा दनदनाते हैं उनके विचार
दनादन सवाल करती हैं
सरापा सवाल होती हैं
पढ़ती हुई लड़कियां
पढ़ती हुई लड़कियां खतरनाक होती हैं!
- शाहिद अख़्तर
शुक्रिया, कविता प्रकाशित करने के लिए। मेरी शुभकामनाएं
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