Monday, January 16, 2012

स्त्री और मीडिया

स्त्री की स्तिथि मीडिया में हम रोज बरोज़ देखते हैं.अखबार,पत्र पत्रिकाएं, फिल्म,कंप्यूटर हर कहीं स्त्री विरोधी मूल्य और विचार दिखाई देते हैं---अक्सर हमें इस तरह के शीर्षक और प्रसंग देखने -सुनने को मिलते हैं--

  • पुलिस ने रंगरलियाँ मनाते पकड़ा 
  • लड़की भाग गई या कोई लड़की को भगा ले गया 
  • भगाई हुई लड़की बरामद
  •  मजनू गिरफ्त में 
  • अवैध संबंधों के चलते बहन /बेटी को मौत के घाट उतारा 
  • इज्ज़त के नाम पर ह्त्या /आत्महत्या
  • पंचायत/शरीयत ने दंड दिया 
  • निर्धन लड़कियों का सामूहिक विवाह कराया गया
इन प्रसंगों की पूरक छवियाँ भी मीडिया में भरी होती हैं --नंगी औरतें, असहाय औरतें ,लड़ाकन औरतें, सस्ती औरतें, कलमुही औरतें आदि आदि आदि........
कुल मिलाकर यही तस्वीर मजबूत होती है कि लड़की एक वस्तु है,एक पवित्र जायजाद है,एक देह,एक बोझ ,मर्ज़ी से पटाई जा सकती है,पूरी तरह पुरुष पर निर्भर है,संपत्ति में उसका हक नहीं है, विवाह करके किसी के संरक्षण में चले जाना ही जैसे उसकी नियति हो .
बिना चेतना और संगठन के क्या यह स्तिथि बदल सकती है ?
लड़कियों का इन्कलाब पुस्तिका से.

1 comment:

  1. वास्तव में
    औरत को उपभोग की वस्तु के अलावा कुछ नही समझा जाता है. इस मुनाफे पर आधारित व्यवस्था और पुरुष प्रधान मानसिकता के खिलाफ लड़ना होगा . इसके लिए जरूरी है कि बड़ी तादाद में लोग जमा हो और सही कारणों को जानकर संघर्ष करना होगा . तभी एक स्वस्थ समाज की कल्पना की जा सकती है...

    ReplyDelete