Friday, January 6, 2012

परवीन शाकिर की गजल










बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए 
मौसम के हाथ भीग के सफ्फाक हो गए 
  बादल को क्या खबर कि बारिश की चाह में
  कितने बुलंद-ओ-बाला शजर खाक हो गए 
जुगनू को दिन के वक्त पकड़ने की जिद करें 
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए 
  लहरा रही है बर्फ की चादर हटा के घास
  सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए 
जब भी गरीब-ए-शहर से कुछ गुफ्तगू हुई 
लहजे हवा-ए-शाम के नमनाक हो गए 
  साहिल पे जितने आबगुजीदा थे सब के सब 
  दरिया के रुख बदलते ही तैराक हो गए 

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