आज तक विज्ञान में सिर्फ 16 महिलाओं को ही नोबेल पुरस्कार मिला है। अन्य क्षेत्रों के कुल नोबेल पुरस्कारों में से सिर्फ 5 फीसदी ही महिलाओं की झोली में आये। बाकी 95 फीसदी पुरुषों के हाथ लगे। मैरी क्यूरी को विज्ञान की दो अलग–अलग शाखाओं में यह सम्मान मिला–– उनको 1903 में भौतिक विज्ञान के लिए और 1911 में रसायन विज्ञान में। नोबेल जीतने वाली वह पहली महिला के नाम से भी जानी जाती हैं। बचपन में मान्या नाम की चुलबुली लड़की से लेकर मैरी क्यूरी तक का सफर बहुत रोचक और संघर्षों से भरा हुआ है। इन दो–दो नोबेल के पीछे जो संघर्ष और लगन छुपी है उससे हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।
मैरी का जन्म पोलैण्ड के वारसा शहर में 7 नवम्बर 1867 को हुआ था। उस समय पोलैण्ड रूस का गुलाम था। रूस में निरंकुश जार का शासन था। जब पोलैण्ड गुलाम था तो पोलैण्ड की औरतें तो गुलामों की भी गुलाम थीं। औरतों को सिर्फ घर के काम करने होते थे। औरतों के लिए पढ़ना–लिखना, लड़कों के कंधों से कंधा मिलाकर काम करना, लम्बी–लम्बी यात्रा करना और देर से शादी करना समाज के रीति–रिवाजों के खिलाफ था। पूरे वारसा शहर में मैरी की माँ जैसी चार–छ: महिला ही पढ़ी लिखी थीं। इन महिलाओं ने मिलजुल कर लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला था। मैरी की माँ इसकी प्रिंसिपल थीं और पापा दूसरे स्कूल में पदार्थ विज्ञान के अध्यापक। मैरी के जन्म के बाद ही उनकी माँ को तपेदिक की बीमारी ने घेर लिया। हालत बिगड़ती गयी और उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। पर मेहनती थीं इसलिए घर पर ही बच्चों के लिए जूते सिलती रहती थीं। बचपन से ही जो शब्द मैरी ने सुने वे थे–– रूस का जार–––। साइबेरिया–––। षड़यंत्र।
1863 में पोलैण्ड की निहत्थी विद्रोही जनता ने जार के खिलाफ आन्दोलन कर दिया। जार ने निर्ममता से आन्दोलन को कुचल दिया और आन्दोलनकारियों को फाँसी पर चढ़ा दिया या साइबेरिया भेज दिया। स्कूल में रूसी भाषा के अलावा अन्य भाषाओं के पढ़ने और पोलैण्ड के इतिहास पर रोक लगा दी। सभी स्कूलों में जार ने जासूस तैनात कर दिये। मैरी के पापा और उनके स्कूल के जासूस प्रिंसिपल में अक्सर लड़ाई हो जाती। एक दिन प्रिंसिपल ने उनकी नौकरी छीन ली। घर की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गयी। मैरी की माँ ने बीमार हालत में ही एक छोटे स्कूल में नौकरी पकड़ ली, लेकिन कुछ ही दिनों बाद वह चल बसीं। इस घटना ने मैरी को झकझोर दिया। उसने मन ही मन सोचा। कितनी बार उसने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि उसकी माँ को ठीक कर दे लेकिन ईश्वर ने इतनी सी न सुनी। अगर वह मनुष्य का इतना भला नहीं कर सकता तो वह क्यों उसकी प्रार्थना करे और क्यों गिरजाघर जाये। आज से मैरी गिरजाघर नहीं जाएगी। वह विद्रोही है।
मैरी के पिताजी ने चारों बच्चों को सही ढंग से पाला–पोसा और पढ़ाया। बाकी सब भी पढ़ने में तेज–तर्रार थे। पर मैरी का कोई जवाब नहीं था। वह खूब पढ़ती, खूब मेहनत करती। इसी तरह 16 साल की मैरी ने स्कूल की परीक्षा पास कर ली। अब समस्या थी आगे की पढ़ाई कैसे और कहाँ हो। गुलाम देश की गरीब बेटी के लिए सभी दरवाजे बन्द थे। पर मैरी कहाँ हार मानने वाली थी। मैरी और उसकी बहन ब्रोन्या ने एक रास्ता खोज निकाला। दोनों ने योजना बनायी कि ट्यूशन पढ़ाकर रुपये इकट्ठे किये जायें और उन रुपयों से आजाद पेरिस में जाकर पिता वाली पदार्थ विज्ञान की पढ़ाई शुरू की जाये।
उनके घर में रुपये की कमी थी पर नैतिक मूल्यों और बुराई के खिलाफ लड़ने की कमी न थी। शाम को चारों बच्चे अपने पिताजी को घेर कर बैठ जाते। पिताजी उन्हें खूब कहानी सुनाते। डिकेंस का लिखा उपन्यास है ‘डेविड कॉपरफील्ड’। यह बच्चों के जीवन पर आधारित एक उपन्यास है। मैरी के पिताजी ने इसका पोलैण्ड भाषा में अनुवाद कर दिया।
पोलैण्ड में जिस तरह देश प्रेम पर रोक थी वैसे ही विज्ञान पर भी रोक लगी हुई थी। लेकिन कुछ मशहूर देश प्रेमी वैज्ञानिकों की लगन से चोरी–चोरी एक विश्वविद्यालय चलने लगा– “प्रदीप्ति विश्वविद्यालय”। इसमें रोज शाम को नौजवान लड़के–लड़कियों को विज्ञान और देश–प्रेम की शिक्षा दी जाती। उन्हें सिखाया जाता कि तुम जब भी जनता के बीच जाओ, उनके बीच उठो–बैठो, उनकी पुरानी रूढ़ियों को तोड़ो, उनमें नये वैज्ञानिक विश्वास भरो। दोनों बहनों ने बड़े उत्साह के साथ इस विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया। उनके लिए मनुष्य कल्याण और विज्ञान दोनों एक ही चीज बन गयी।
लेकिन पैसे की कमी हल न हुई। पेरिस जाने का सपना अधूरा रहा। फिर मैरी ने एक दिन सलाह दी कि पहले ब्रोन्या को पेरिस भेज दिया जाये। कुछ दिन बाद रुपये इकट्ठे करके वह भी चली आयेगी। पिताजी और मैरी दोनों हर महीने ब्रोन्या के लिए रुपये भेजते। ब्रोन्या खूब अच्छे नम्बर से पास हुई। ब्रोन्या ने एक क्रान्तिकारी वैज्ञानिक से शादी की। उनको देश भक्ति के जुर्म में सरकार ने काले पानी की सजा दे दी थी। वे किसी तरह भागकर दोबारा पेरिस आ गये थे। यह बात मैरी के पिताजी को पहले से मालूम थी। वह भी शादी से खुश थे।
खैर एक दिन मैरी के पास ब्रोन्या की एक चिट्ठी आयी–– “फौरन चली आ, मैं शादी कर रही हूँ। हमारे यहाँ तू बेखटके रह सकेगी। किराये के रुपयों का किसी तरह इन्तजाम कर ले और गाड़ी पर बैठकर पेरिस भाग आ।” मैरी पेरिस चली गयी और खूब मन लगाकर पढ़ाई की। वह बहन के घर ज्यादा दिन नहीं रही। विश्वविद्यालय के पास एक गरीब बस्ती में सस्ता कमरा किराये पर ले लिया। वह पढ़ने और प्रयोग के काम में इतनी लीन हो जाती कि खाना–पीना तक भूल जाती। धीरे–धीरे उसका स्वास्थ्य गिरता गया। एक दिन तो बेहोश ही हो गयी। उसके दोस्तों ने ब्रोन्या को खबर की, तब ब्रोन्या और उसके पति काशिमिर उसे घर ले गये। स्वस्थ होने पर मैरी फिर अपने काम में व्यस्त हो गयी। उसकी लगन और मेहनत देखकर एक नौजवान अध्यापक पियरे ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा। पियरे क्यूरी भी चर्चित वैज्ञानिक थे और वैज्ञानिक सोच समझ वाले परिवार से थे। दोनों ने शादी कर ली।
दोनों ने समय बर्बाद न हो इसके इन्तजाम कर लिये थे। लेकिन फिर भी मध्यम वर्ग की पारिवारिक समस्याओं में उलझना ही पड़ता। खाना बनाना, बाजार से सामान लाना, कपड़े धोना इसमें काफी वक्त निकल जाता। मैरी ने खाना और पकवान बनाना भी सीख लिया। 1897 में इनके बेटी हुई–– इरीन क्यूरी। बड़ी होकर वह भी प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुर्इं।
इरीन के जन्म के पहले से ही मैरी पीएचडी पूरी करने के बारे में सोच रही थीं। वह और पियरे अक्सर ऐसी खोज के बारे में बात किया करते जो अब तक किसी ने न की हो और साथ ही वह मानव जीवन के लिए उपयोगी भी हो। इस समय तक वैज्ञानिकों ने प्रकृति में 92 मूल तत्व खोज लिये थे। तभी पेरिस के एक अध्यापक हेनरी बर्कले ने एक्स रे की खोज कर दी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कोई यूरेनियम नाम का तत्व है, उससे भी ऐसी ही अदृश्य किरणें निकलती हैं। बस फिर क्या था, मैरी को अपनी खोज का विषय मिल गया था। उन्होंने सोचा कि वह अब तक मौजूद सभी तत्वों की जाँच करेंगी कि उनसे अदृश्य किरणें निकलती हैं कि नहीं। हो सकता है ऐसे और भी तत्व हों। और जिस तरह एक्स रे चमड़ी, खून, माँस को भेदकर हड्डियों के बारे में पता लगा लेते हैं वैसे ही इनसे निकलने वाली किरणें मानव जाति के लिए उपयोगी हांे।
उन्हें अपनी रिसर्च के लिए भारी विनती के बाद विश्विद्यालय की निचली मंजिल पर सीलन भरा गोदाम टाइप का कमरा मिल गया। वहीं काम में लगी रहतीं। अपनी बेटी को भी साथ ले आतीं। उनके लिए औजार पियरे ने तैयार कर दिये थे। इसके बाद खोज हुई नये तत्व की। 1898 जुलाई का महीना था। नये रेडिओएक्टिव पदार्थ को अलग कर लिया गया था। अब सवाल आया कि इस नन्हे शिशु का नाम क्या रखा जाय। पियरे ने मैरी से पूछा। मैरी ने सोचा। उसे अपना पोलैण्ड याद आया। गुलाम पौलेण्ड। उसने नन्हे शिशु का नाम रखा पोलेनियम। अब तो सिलसिला आगे बढ़ गया। पियरे भी अब मैरी के साथ हो लिये। 1902 में उन्होंने रेडियम खोज निकाला। इसमें यूरेनियम से हजारों गुना ताकत वाली अदृश्य किरणें निकलती हैं। ब्रिटेन और अमरीका के वैज्ञानिक खुशी में पागल हो उठे। उन्होंने देखा कि कैंसर का समाधान रेडियम ही कर सकता है। मैरी और पियरे क्यूरी ने रेडियम को अलग करने का तरीका निकाल लिया था। अमरीका जैसे देशों ने उनके तरीके का इस्तेमाल करने के लिए अनुमति माँगी। इस दम्पत्ति ने जो जवाब दिया वह आज के वैज्ञानिकों के मुँह पर तमाचा भी है। इन्होंने कहा, “यह हमारी घरेलू सम्पत्ति तो है नहीं। हमने तो जनगण के कल्याण के लिए ही इसे खोजा था। हम इसे निकालने के तरीके को अखवार में छपवा देंगे जिससे हर किसी के काम आ सके।” आज पेटेंट करा के दवाइयों और खेती के लिए जरूरी बीज, खाद और फर्टिलाइजर्स की कीमत बेतहाशा बढ़ाने वाली कम्पनियों को इससे सबक लेना चाहिए कि विज्ञान किसी की घरेलू सम्पत्ति नहीं। वह पूरी मानवजाति की उपलब्धि है।
1903 में मैरी क्यूरी को पदार्थ विज्ञान में योगदान के लिए नोबेल पुरूस्कार दिया गया। इसके बाद इन्होने रेडियम को ठोस धातु के रूप में तैयार किया। इसके लिए रसायन विज्ञान में उन्हें 1911 में फिर से नोबेल पुरूस्कार मिला। इस तरह वह विज्ञान की दुनिया में ऐसी पहली महिला बनीं। पति पियरे की मृत्यु के बाद उनके खाली पद की जिम्मेदारी भी मैरी क्यूरी को दी गयी। क्योंकि पूरे विश्वविद्यालय में पदार्थ विज्ञान का अध्यक्ष बनने के लिए और कोई इतना योग्य नहीं था। पहली बार किसी महिला ने यह पद सम्भाला था।
उन्होंने पियरे क्यूरी की याद में एक प्रयोगशाला बनायी। पोलेण्ड में रेडियम प्रतिष्ठान बनवाया। आजीवन शांतिपूर्ण समाज की स्थापना के लिए प्रयास करती रहीं। इसीलिए जब ‘लीग ऑफ नेशन्स’ ने राष्ट्रों के बीच एकता बनाने को समिति बनायी तो मैरी ने उसमें सक्रिय भागीदारी की। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया के लिए एक जैसी वैज्ञानिक शब्दावली का उपयोग किया जाये। अब तक किये गये आविष्कार और विज्ञान की पुस्तकों की सूची बनायी जाये और दुनिया में किसी भी देश के वैज्ञानिक का काम रुपये की कमी के चलते न रुक पाये इसकी व्यवस्था की जाये।
जिन्दगी भर विज्ञान और जनता के लिए काम करने वाली मैरी का शरीर अब जवाब देने लगा था। आँखों का चार बार ऑपरेशन होने के बाद भी ठीक न हो पायीं। फिर भी जो ज्ञान उन्होंने अर्जित किया उसे वे लिखती रहीं। उनकी किताब रेडिओएक्टिव पूरी हो गयी। पर हालत ज्यादा खराब होने लगी। डॉक्टर ने बताया कि मैरी ने प्रकृति से जिस तत्व को समाज के लिए छीना था आज वही हम से मैरी को छीन रहा है। रेडियम की किरणों ने मैरी के खून के कणों को प्रभावित करना शुरू कर दिया था।
4 जुलाई 1934 की सुबह आसमान नीला था। सूरज की पहली किरण ने मैरी के माथे को छुआ और माथे के नीचे हमेशा के लिए बन्द हो गयी आँखों को प्यार किया। इस तरह इस महान वैज्ञानिक ने संसार से हमेशा के लिए विदाई ले ली। मैरी क्यूरी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं पर उनके विचार, उनके संघर्ष हमारे लिए हमेशा प्रेरणा के स्रोत रहेंगे।
–– शशि चैधरी