शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के 104वें जन्म दिन-28 सितम्बर 2010 को हम मुक्ति के स्वर की शुरुआत कर रहे हैं जो महिलओं की समस्यों, सपनों और संघर्षों की अभिव्यक्ति का मंच है. इसके माध्यम से हम तमाम संघर्ष-रत महिला साथियों से संवाद कायम करना चाहते हैं. हमारा मानना है कि जो महिलाएं अपनी आर्थिक आज़ादी और आत्मसम्मान के लिए लड़ रही हैं वे अपनी ज़िंदगी के कठिन रास्तों पर चलते हुए नारी समुदाय की मुक्ति की राह पर भी आगे कदम बढ़ाएंगी और अनुभवों से सीखते हुए वैचारिक रूप से भी मजबूत होती जाएंगी.
आज महिलओं की स्थिति में जो भी परिवर्तन दिखाई देते हैं और जो भी अधिकार हमें हासिल हुए हैं वे अतीत में लड़े गए अनगिनत साहसिक संघर्षों की देन है. लेकिन आज भी समज की अधिकांश औरतें शिक्षा, रोज़गार और आत्मनिर्णय के अधिकारों से वंचित है.
पुरुषप्रधान सोच और पूंजीवादी शोषण के बोझ से मुक्ति के लिए हमें अपने सामूहिक प्रयासों को तेज करना होगा. नारी चेतना और संगठन की राह पर यह एक शुरुआती कदम है. उम्मीद है कि इसमें हमें आप सबका पूरा सहयोग मिलेगा.
आज महिलओं की स्थिति में जो भी परिवर्तन दिखाई देते हैं और जो भी अधिकार हमें हासिल हुए हैं वे अतीत में लड़े गए अनगिनत साहसिक संघर्षों की देन है. लेकिन आज भी समज की अधिकांश औरतें शिक्षा, रोज़गार और आत्मनिर्णय के अधिकारों से वंचित है.
पुरुषप्रधान सोच और पूंजीवादी शोषण के बोझ से मुक्ति के लिए हमें अपने सामूहिक प्रयासों को तेज करना होगा. नारी चेतना और संगठन की राह पर यह एक शुरुआती कदम है. उम्मीद है कि इसमें हमें आप सबका पूरा सहयोग मिलेगा.
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