Saturday, February 19, 2022

भारत में महिलाओं का मनपसन्द कपड़े पहनना: आजादी या मौत!


 
वक्त बेवक्त हमें याद दिलाया जाता है कि हम महिलाएँ दोयम दर्जे की नागरिक हैं, जैसे अगर ज्यादा पढ़–लिख लें तब रात को अकेले घर से निकल गये तब, अपनी पसन्द की शादी कर ली तब, यहाँ तक कि अपनी पसन्द के कपड़े पहन लिए तब भी। आये दिन इस तरह की बातें तो की ही जाती हैं मगर इस बार ये बातें जिस व्यक्ति ने कही वह कोई और नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने की। उन्होंने भरे पत्रकार सम्मलेन में लड़कियों के जीन्स पहनने पर सवाल उठाये।
पूर्व मुख्यमंत्री रावत ने एक महिला के जूतों से लेकर सिर तक के कपड़ो तक की व्याख्या बड़ी बारीकी से की और लड़की द्वारा फटी जीन्स (रिप्ड जीन्स) पहनने पर उसकी पूरी की पूरी शख्सियत को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया। रावत ने किसी महिला के बारे में बोलते हुए कहा कि वह महिला बच्चों से जुड़े एक एनजीओ के लिए काम करती थी और ऐसी महिला जो स्वयं फटी जीन्स पहनती है वह बच्चों को क्या सिखाएगी? 
हमारे समाज में औरतों ने हर चीज के लिए लड़ाई लडी हैं। अपना हर हक लड़कर छीना है, वह चाहे पढ़ने की आजादी हो या कपड़े पहनने की। रावत के बयान के विरोध में भारत भर की लड़कियों और महिलाओं ने सोशल मीडिया में जमकर विरोध किया और सड़कों पर भी उतर आयीं। अलग–अलग शहरों में रावत और तमाम नेताओं के खिलाफ रैली निकली गयी, बाद में अपने भद्दे बयान के लिए रावत को माफी भी माँगनी पड़ी।
रावत के बचाव में उत्तराखण्ड के ही एक और मंत्री गणेश जोशी ने कहा “महिलाएँ बहुत ज्यादा बात करती हैं, उनके लिए परिवार और बच्चों की देखभाल से जरूरी कुछ भी नहीं है।” भाजपा हो या कोई और पार्टी, लड़कियों को क्या करना चाहिए क्या नहीं, अक्सर इस बात पर मंत्री बयान देते नजर आते हैं। उनकी इन बातों से उनकी मानसिकता किस तरह महिला विरोधी हैं हम समझ सकते हैं।
जीन्स सबसे पहले अमरीका में खदान और खेतों में काम करने वाले मजदूरों के लिए बनायी गयी थी। इसका कपड़ा जल्दी नहीं फटता था इसलिए यह मजदूरों के बीच काफी लोकप्रिय हो गयी और धीरे–धीरे अवज्ञा का प्रतीक बनती चली गयी। 
जीन्स अपने आप में ही आगे बढ़े हुए समाज की निशानी मानी जाती है। पर भारत का समाज ऐसा समाज बनता जा रहा है जहाँ पिछले दिनों जीन्स पहनने पर लड़की को मौत के घाट उतार दिया गया।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के देवरिया में एक 17 साल की बच्ची को उसके घर के मर्दों ने उसके जीन्स पहनने पर पीट–पीट कर मार डाला। लड़की का जीन्स पहनना उसके दादा और चाचा को पसन्द नहीं था इस बात पर बहस ने विवाद का रूप ले लिया और फिर लड़की की लाश पटनवा पुल की रेलिंग से लटकती हुई मिली। नवीं में पढ़ने वाली बच्ची की जिन्दगी हमारे समाज के मर्दों के अहम के आगे कितनी छोटी थी। 
चरम मर्दवादी और स्त्री विरोधी संस्कृति वाले देश में विदेशी कपड़े पहन कर ध्यान आकर्षित करने का आरोप लगा कर भारतीय लड़कियों और महिलाओं को अक्सर शर्मिन्दा किया जाता है। जहाँ एक तरफ लड़कियाँ जान गवाँ रही हैं, वहीं बाकी लड़कियाँ उसी जीन्स को पहनकर आजाद महसूस करती हैं। 23 साल की शिखा ने पहली बार जीन्स अपने कॉलेज हॉस्टल में कुर्ती और दुपट्टे के साथ पहनी और खुद को आजाद महसूस किया क्योंकि वह यूपी के अपने गाँव में कभी जीन्स पहनने के बारे में सोच भी नहीं सकती। अगर वहाँ वह पहने तो शायद वह भी किसी पुल से निकले हुए सरिया में लटकती हुई पायी जाये।
2015 में एक मुस्लिम ग्राम परिषद ने 10 से अधिक गाँव में लड़कियों को मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने और जीन्स और टी–शर्ट पहनने पर प्रतिबन्ध लगा दिया ताकि उन्हें लड़कों से बात करने या अभद्र दिखने से हतोत्साहित किया जा सके। इस साल मार्च में  मुजफ्फरनगर जिले के एक ग्रामीण निकाय ने महिलाओं को जीन्स और पुरुषों को निक्कर पहनने से यह कहते हुए रोक दिया है कि यह पश्चिमी संस्कृति का हिस्सा है और लोगों को पारम्परिक भारतीय कपड़े पहनने चाहिए। बिहार की 15 साल की रिया के माँ–बाप ने उसे बताया है कि अगर जीन्स पहनी, तो दूल्हा नहीं मिलेगा। इसलिए उसके गाँव की सभी लड़कियाँ सिर्फ सलवार कमीज ही पहनती हैं।
जीन्स भारत में एक अनौपचारिक कपड़ा है, आज हमारी माँग यह है कि हमारी जीन्स में मर्दों के जीन्स की तरह बड़ी जेब क्यों नहीं होती तो नेताओं की माँग है लड़कियाँ जीन्स पहनती ही क्यों हैं। कई महिलाओं के लिए जीन्स विरोध का प्रतीक है तो कई महिलाओं के लिए आजादी का प्रतीक है।
महिलाओं को क्या पहनना चाहिए, इस पर हमारे समाज के हरेक व्यक्ति के पास कुछ न कुछ सलाह और विचार जरूर हैं। हमारे कपड़े सशक्तिकरण, उत्पीड़न, प्रलोभन, संस्कृति सब कुछ से जुड़े हुए हैं। कुछ लोग बुर्का, नकाब और घूँघट को प्रतिगामी और पितृसत्तात्मक कहते हैं। दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जो महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों में वृद्धि के लिए निक्कर, छोटी स्कर्ट और जीन्स को दोष देते हैं। लेकिन महिलाओं की पसन्द क्या है, वे क्या पहनना चाहती हैं, इस पर बातचीत कहाँ है? क्या हम लड़कियों और महिलाओं को अपनी पसन्द के अनुसार पोशाक पहनने का अधिकार नहीं है? हमें क्या पहनना है यह दूसरा क्यों तय करे? 
असमानता और उत्पीड़न के खिलाफ हमारे संघर्ष में हम महिलाओं को एक–दूसरे को नीचा दिखाना बन्द करना चाहिए।
जहाँ भी मनपसन्द कपड़े पहनने की आजादी लड़कियों ने हासिल की उस समाज मे लड़कियाँ कई बेड़ियाँ तोड़कर समाज को आगे बढ़ाती हैं। इतिहास गवाह है कि रजिया सुल्तान ने भी अपने पारम्परिक कपड़े छोड़ कर ही रियासत सम्भाली थी जबकि आज इतने सालों बाद भी हमे फिर से उसी कटघरे में खड़े कर हमारे खिलाफ होने वाली हिंसा का दोष कपड़ों  के ऊपर मढ़ दिया जाता है। आप भारत के किस जिले या शहर में रहते हैं अब तो उसी से इस बात का फैसला होगा कि अपने पसन्द के कपड़े पहनना आजादी है या मौत।

–– शालिनी

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