Tuesday, December 21, 2010

maya enjelo ki kavita- aurat ke kam

मुझे बच्चे पालने हैं
कपड़े रफू करने हैं
फर्श साफ करना है 
हाट-बाज़ार करना है
फिर सालन तलना है
बच्चे को नहलाना है
पूरे कुनबे को खिलाना है
बगिया की निराई  करनी है   
कमीज पर इस्तरी  करनी है
बच्चों को संवारना  है 
टीन का डिब्बा काटना है
झोपड़ी साफ़  करनी है
बीमार की देख-रेख करनी है
कपास  तोड़ कर लाना है
   चमको मेरे ऊपर, सूरज की  किरणों
   बरसो मेरे उपर, बादल की बूंदों
   अहिस्ता-अहिस्ता गिरो, ओस के कण
   और फिर से शीतल करो मेरी भौंहें
तूफान मुझे उड़ा ले चल यहाँ  से 
अपने प्रबल  वेग हवा के साथ  
तैरने  दो  हमे आकाश के आ-पार
ताकि फिर से  कर सकूँ आराम
हौले-हौले गिरो, बर्फ के फाहे
ढक लो मुझे सफेदी में
ठन्डे बर्फीले चुम्बन और
आज की रात मुझे आराम करने दो
सूरज, वर्षा मेहराबदार आसमान
परबत, सागर, पत्ती और छात्तान
चाँद चमकता, टिम-टिम तारे
तुम सब ही हो ख़ास हमारे. 

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