मुझे नहीं सुहातीं तुम्हारी अच्छी और सीधी-साधी लडकियाँ.
वो जो केवल उन्हीं रास्तों पर चलती रहीं
जिन्हें तुमने तय किया था.
मुझे तो पसंद हैं वो लडकियाँ जिनके चलने से
बनती चली जाती हैं
सकरी और घुमावदार पगडंडियाँ.
जैसे शास्त्रीय अनुशासनों को तोड़कर कोई कलाकार
अपने कैनवास पर एक नए ढंग का चित्र उकेरता है.
वो जिनका बचपन मटमैले रंग का होता है
जिनकी फ्राक पर चारकोल के दाग लगे रहते हैं
और ठण्ड को ठूस-ठूस कर खुद में भरते भरते
जिनके गाल भी फट जाते हैं.
जिनके नाखून उटपटांग से बढ़ते हैं
वो नहीं कि पाइलर लेकर बैठी हो
नाखुनो को घिसते हुए
या नहा धुला कर गुलाबी फ्राक में
बिठा दी जाती हो अपनी गुलाबी गुडिया को सजाते हुए.
किसी गुड्डे के संग ब्याहने के लिए.
मुझे नहीं हैं पसंद ऐसी छुई मुई सी गुलाबी लडकियाँ.
वो लडकियाँ जिन्हें जामुनों के पकने का इंतज़ार
ज्यादा ज़रूरी लगता है
बजाए इसके कि खुद के पकने का इंतज़ार करें
पति, बॉयफ्रेंड, साधु या देवता के
स्वाद के लायक बनने के लिए.
वो लडकियाँ जो छोटे कपड़ों में नहीं तलाशती आजादी
न ही लम्बे और ढीले कपड़ों में बुनती हैं संस्कार
वो मुक्त होती हैं गुलाम नैतिकता से पैदा हुई बीमारियों
और बाज़ार द्वारा बताये शर्तिया इलाजो से
जो दोनों ही कपडे और शरीर में उलझाये रखते हैं.
वे नहीं मानती खुद को केवल शरीर
पर न ही शरीर को किसी किस्म की तकलीफ भी देती हैं
सुन्दर कहे जाने की गुलाम चेष्ठा में.
वो केवल इसलिए रुमाल पर फूल बनाना नहीं छोड़ देती
कि कढाई करना पुरानी सी फीलिंग लाता है.
वो लडकियाँ जिनका प्रेम बहती हुई नदी सा निर्मल होता है
और जो प्यास बुझाते और हरियाली लिखते चलती हैं.
जिनका प्रेम ठहरी और मलिन होती झील सा हो
नहीं तृप्त कर पाता मुझे.
वो लडकियाँ जिनका माँ हो पाना बच्चादानी तय नहीं करती
जो मातृत्व में डूबी रहती हैं.
वो जो खुद को बचा बचा कर नहीं बाटती
वो जो खुद को लुटा पाती हैं.
जो कुंआरी किरण सी पवित्र होती हैं
जो वासनाओं के अँधेरे को छूती हैं
और रौशन कर देती हैं.
ऐसी अनगढ़ी और खुद को खुद से
तराशने वाली लडकियाँ पसंद हैं मुझे.
- अक्षय अनुग्रह