Wednesday, September 11, 2024

क्लारा जेटकिन और उनका जीवन

 



औरतों के नौकरी करने से, मर्दो की नौकरियों की जगह कम हो जाती है। इस बात के जवाब में क्लारा जेटकिन ने कहा था कि यह स्त्रियों का नहीं, पूँजीवादी व्यवस्था का दोष है। उन्होंने कहा था कि श्रम की पूँजीवाद से मुक्ति के बिना महिला मुक्ति सम्भव नहीं है।
क्लारा जेटकिन का जन्म जुलाई 1857 में जर्मनी के सेक्सोनी प्रान्त में हुआ था उनकी माता जोसेफिन जर्मनी के आरम्भिक स्त्री आन्दोलन में सक्रिय रूप से भागीदार रही थीं।
अपनी शिक्षक बनने की पढ़ाई करने के बाद वह जर्मनी के महिला आन्दोलन और श्रमिक आन्दोलन से सक्रिय रूप से जुड़ गयीं। क्लारा जेटकिन ने महिलाओं की मुक्ति के लिए मार्क्सवादी दृष्टिकोण अपनाया जिसके बिना महिलाओं की पूर्ण मुक्ति सम्भव नहीं है। 1891 से 1917 तक क्लारा जेटकिन ने डाइ ग्लीछेट (इक्वलिटी) नाम से पत्रिका निकाली। इस पत्रिका में वह कारखानों में महिलाओं की स्थिति, श्रमिकों की गतिविधियों, हड़तालों के बारे में, महिला कारखाना निरीक्षकों की आवश्यकता के बारे में लिखतीं। महिलाओं से जुड़े ज्यादा से ज्यादा मुद्दों को इस पत्रिका में उठाया गया। इस पत्रिका के पाठकों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती गयी। उन्होंने स्टुटगार्ड में बुक बाइंडर यूनियन और टेलर्स एण्ड सिमस्ट्रेसेस यूनियन की सदस्य के रूप में भी अपनी भागीदारी रखी। इस यूनियन में रहते हुए उन्होंने श्रमिकों और महिलाओं के संगठन बनाने का काम शुरू किया।
सर्वहारा वर्ग की महिलाओं को भटकाव के रास्ते से रोकते हुए क्लारा जेटकिन कहती हैं कि सर्वहारा वर्ग की स्त्रियों को अपने ही वर्ग के पुरुषों को अपना शत्रु समझकर उनसे होड़ करने के बजाय, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर पूँजीवादी समाज के खिलाफ लड़ना चाहिए। कामकाजी औरतें जो घर से बाहर निकलकर नौकरी करने को ही स्वतंत्रता मान लेती हैं, उनसे कहा कि नौकरी करना स्वतंत्रता की पहली शर्त है, उसकी उपलब्धि नहीं है।
1890 में क्लारा जेटकिन की प्रेरणा और मजदूर वर्ग की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रयास से जर्मनी में समाजवादी महिला आन्दोलन उभरा। उन्होंने समान अधिकार और समान वेतन की माँग की। आन्दोलन की मुख्य माँगें थीं–– काम के घंटे कम करना, पुरुषों के बराबर मजदूरी, बाल मजदूरी का उन्मूलन, महिला मजदूरों के जीवन यापन की परिस्थितियों में सुधार।
क्लारा जेटकिन ने 17 अगस्त को पहले अन्तरराष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन का ऐलान किया। संयुक्त राज्य अमरीका और यूरोप से 58 प्रतिनिधियों ने इसमें भागीदारी की। इस सम्म्मेलन में महिलाओं के वोट के अधिकार का प्रस्ताव रखा गया जिसे सर्वसहमति से स्वीकार किया गया।
न्यूयॉर्क शहर में भी 1908 और 1909 में कपड़ा मिल मजदूर महिलाओं के बड़े–बड़े आन्दोलन हुए। 8 मार्च 1911 को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पूरे यूरोप में एक लाख महिलाओं ने प्रदर्शन किये। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस का प्रस्ताव क्लारा जेटकिन ने इण्टरनेशनल कॉन्फ्रेंस में रखा था। यह कॉन्फ्रेंस कामकाजी महिलाओं के लिए आयोजित की गयी थी। इस कॉन्फ्रेंस में 17 देश से 100 से अधिक महिलाएँ शामिल हुई थीं।
जेटकिन ने कामकाजी वर्ग की महिलाओं को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी और वर्षों तक कठिन संघर्ष किया। महिलाओं को संगठित करना, पुरुषों की तुलना में कठिन था। जैसे, महिलाएँ अकुशल मजदूर थीं और बच्चों के पालन–पोषण के लिए अक्सर उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ती थी। इन सबके अलावा कानूनी बाधाएँ भी थीं जिनके चलते महिलाओं को संगठन में शामिल करना मुश्किल था।
1860 के दशक में सेक्सोनी प्रान्त में जो कपड़ा उद्योग का केन्द्र था, अधिकांश महिला मजदूर ही काम करती थीं। उन्होंने समान अधिकार और समान वेतन की माँग की। 1870 के दशक में अपने संगठन के सदस्यों की चेतना बढ़ाने के लिए महिलाओं के शैक्षणिक संघ खोले गये। हालाँकि इनको राष्ट्र के लिए खतरा बताकर पुलिस द्वारा बन्द करवा दिया गया।
क्लारा जेटकिन के काम के केन्द्र में सिर्फ महिलाएँ ही नहीं थीं। बल्कि वे महिलाओं और पुरुषों के बीच में एकता स्थापित करना चाहती थीं। उनका मानना था कि कामकाजी औरतें और कामकाजी पुरुष एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। रूस की यूनियन में भी पुरुष और महिलाएँ दोनों ही शामिल थे। जर्मनी में संगठन में महिलाओं के लिए बाधा दूर करने में एक पीढ़ी लग गयी।
कम्युनिस्ट पार्टी के गठन के बाद क्लारा ने रोजा लग्जमबर्ग के साथ मिलकर अखबार निकालने का काम शुरू किया था। क्लारा ने अपना जीवन मुक्ति की राह के लिए संघर्ष पर चलते हुए बिताया। क्लारा ने महिला मुक्ति और महिला मुद्दों पर लेनिन से भी चर्चा की। उन्होंने महिलाओं के वोट डालने के अधिकार के लिए संघर्ष किया और विपरीत परिस्थितियों में भी संगठन बनाने का काम जारी रखा। जिन परिस्थितियों में महिलाएँ नौकरी छोड़ देती थीं, उन स्थितियों में भी उन्होंने संगठन और आन्दोलन का काम जारी रखा। अपने विचारों को पत्रिका और अखबार छापकर या पर्चे–पुस्तिका लिखकर अलग–अलग तरीके से लोगों तक पहुँचाने का प्रयास किया। कई देशों की महिलाओं को अपनी गोष्ठियों में शामिल किया। अपने संगठन की महिलाओं की वर्ग चेतना लगातार बढ़ाने और उन्हें वर्ग संघर्ष में शामिल करने का प्रयास किया। उन्होंने महिला आन्दोलन में सर्वहारा वर्ग के सामान्य मुद्दों को शामिल करके महिला आन्दोलन को सही रास्ते पर चलाने का प्रयास किया।
–– शालू


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