युवावस्था में पहुँचते हुए एक लड़की कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक
बदलावों से गुजरती है, जिसमें एक बड़ा बदलाव है– मासिक धर्म का होना। मासिक धर्म में होने
वाले रक्तस्राव को रोकने के लिए आज भी बहुतायत लड़कियाँ और महिलाएँ कपड़े का
इस्तेमाल करती हैं, हालाँकि मध्यम वर्ग अब कपड़े से आगे बढ़कर सेनेटरी नैपकिन और टैम्पून्स
का इस्तेमाल करने लगा है, पर यह कपड़े की तुलना में काफी महँगा
विकल्प है।
कपड़े के इस्तेमाल में इन्फेक्शन का खतरा होता है जो आगे चलकर बड़ी
बीमारियों का कारण बन सकता है, कपड़े के अपनी जगह से खिसक जाने के कारण
दाग का भी डर रहता है। इसी समस्या को हल करने के लिए डिस्पोजेबल पैड्स का इस्तेमाल
किया जाने लगा। यह कपड़े की तुलना में ज्यादा स्वास्थ्यप्रद है और अपनी जगह पर बना
रहता है। संक्रमण से बचने के लिए इन पैड्स को हर 6 घंटे में बदलना
जरूरी होता है, जिससे इसको इस्तेमाल करने की कुल लागत बढ़ जाती है। वहीं इसमें
प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है जिसके कारण यह पर्यावरण के लिए भी खतरा है।
पैड्स की जगह एक सस्ता विकल्प भी मौजूद है– मेंस्ट्रूअल कप, जो
ज्यादा प्रचारित नहीं है, क्यों, इस पर हम इस लेख
के अन्तिम भाग में चर्चा करेंगे। पहले जानते हैं कि यह है क्या?
यह सिलिकॉन का बना होता है और इसकी आकृति कप नुमा होती है। इसका
अन्तिम सिरा बिलकुल पतला होता है। इस कप को मोड़कर योनि में भीतर डाला जाता है जहाँ
यह रक्त को भीतर ही इकट्ठा करता है।
आइये अब नजर डालते हैं इसके बारे में फैले कुछ मिथक और वास्तविक
तथ्यों पर––
1. यह इस्तेमाल करने पर काफी दर्द देता है और इससे कौमौर्य भंग होने का खतरा रहता है।
इसे लगाने का सही तरीका सीखे जाने की जरूरत होती है। इसे मोड़कर
वैजाइना में डालते हैं और अन्दर जाकर यह खुल जाता है और वैक्यूम बना लेता है। इसे
कई तरीके से मोड़ा जा सकता है, जिसमें दो तरीके ज्यादा प्रचलित हैं–
पंच डाउन फोल्ड और सी फोल्ड।
यह सही है कि पहली ही बार में इसे बिल्कुल अच्छे से इस्तेमाल करना
थोड़ा मुश्किल होता है, पर दो–तीन महीनों में हम इसमें निपुण हो जाते हैं। तब तक आप पैड और
कप को साथ में इस्तेमाल करें क्योंकि अगर यह ठीक से नहीं लगता तो हल्के–फुल्के लीक
होने का खतरा रहता है।
जहाँ तक कौमार्य के भंग होने की बात है, तो पहले हम जान
लेते हैं कि यह है क्या बला?
महिलाओं
की वैजाइना में एक बहुत महीन झिल्ली जिसे हाइमन कहते हैं, मौजूद होती है,
जिसे
माना जाता है कि पहली बार शारीरिक सम्बन्ध बनाने पर टूटती है। हालाँकि यह झिल्ली
और भी कई कारणों से टूट सकती है, मसलन साइकिल चलाने से, कुछ
प्रकार के व्यायाम करने से, उछल–कूद करने से और हाँ, कप
लगाने से भी।
2. यह अन्दर जाकर खो गया या फँस गया तो?
इसके लिए यह जानना जरूरी है कि हमारी वैजाइना एक स्ट्रेचेबल अंग होती
है जो दूसरे छोर पर बन्द होती है, तो इसके खो जाने या फँस जाने का खतरा
नहीं होता। यह महज एक डर या भ्रांति है।
3. ऐसे कुछ भी शरीर के अन्दर होगा तो हम सारा दिन उसे महसूस करते रहेंगे जो काफी असुविधाजनक होगा।
यह सच है कि कप को इस्तेमाल करने के शुरुआती दिनों में आप इसे महसूस
कर सकते हैं क्योंकि शायद तब यह सही से लगा नहीं होगा पर अगर यह सही से इस्तेमाल
किया गया है तो आप इसे बिल्कुल भी महसूस नहीं कर पाएँगे और आपको महसूस नहीं होगा
कि आपके शरीर में कुछ बाहरी तत्व भी मौजूद है।
4. बार–बार एक ही कप लगाने से इंफेक्शन हो सकता है।
मेंस्ट्रूअल कप चिकित्सीय गुणवत्ता वाले सिलिकॉन से बना होता है जिसे
स्टेरलाइज यानी पानी में दो–तीन मिनट तक उबाल कर बार–बार इस्तेमाल किया जा सकता
है। इसे कम–से–कम 10 वर्षों तक इस्तेमाल करना पूरी तरह सुरक्षित होता है, बस
हमें हर मासिक के पहले और खत्म होने पर इसे स्टेरलाइज करना होता है। यह आपको पैड
और कपड़े के गीलेपन और इन्फेक्शन के खतरे से भी सुरक्षित रहता रखता है।
5. टॉयलेट जाने के लिए इसे निकालना पड़ेगा / टॉयलेट करते समय यह बाहर आ सकता है।
यह बिल्कुल भी सही नहीं है। टॉयलेट के बाहर आने और मासिक धर्म के
रक्त के बाहर आने के रास्ते अलग–अलग होते हैं। मेंस्ट्रूअल कप के साथ टॉयलेट जाने
में कोई दिक्कत नहीं आती।
6. खून इकट्ठा होने पर अगर लेटेंगे तो खून वापस शरीर के अन्दर जाकर दिक्कत कर सकता है।
कप शरीर के अन्दर ही खून एकत्रित करता है तो यह उसी प्रकार होता है
जैसे वही खून शरीर से बाहर आने से पहले शरीर में होता है। दूसरी बात कि खून को
बाहर निकालने के लिए हमारा गर्भाशय लगातार मरोड़े करता है, जिसके जरिये वह
खून को बाहर की तरफ धकेलता है। इस तरह से हम समझ सकते हैं कि उसके वापस जाने का
कोई सवाल ही नहीं उठता।
7. कप बाहर निकालने में खून फैल जाएगा और यह बहुत गंदा लगेगा।
ऐसा हो सकता है, पर थोड़ी सावधानीपूर्वक कप को बाहर
निकालने से इस स्थिति से बचा जा सकता है। इसके लिए कप के आखिरी छोर पर बनी पूँछ को
बाहर की तरफ खींच कर इसे हल्का सा दबा दें, इससे कप में बना
वैक्यूम टूट जाएगा, फिर कप को मुड़ा हुआ ही धीरे से बाहर निकाल लें। इससे रक्त फैलने से
बच सकता है।
मेंस्ट्रूअल कप से जुड़ी कुछ और बातें हमें पता होनी चाहिए जैसे कि
इसे कितनी–कितनी देर में खाली करना पड़ेगा। इसका पता करने के लिए शुरुआत में 6–7
घंटे में कप को निकाल कर चेक करें। अगर यह थोड़ा खाली है तो इसका मतलब है कि आप इसे
एक–दो घंटे और यानी कि कुल 8–9 घंटे में खाली करेंगे। अगर ज्यादा
खाली है यह समय आपके लिए कुल 12 घंटे तक भी हो सकता है। इसको खाली
करने का समय, आपको कितना रक्तस्राव होता है, इस पर निर्भर
करता है और हाँ इसको खाली करने के बाद आप इसे सादे पानी से धुल कर पुन: प्रयोग में
ला सकते हैं। मासिक के अन्त में जब आपका रक्तस्राव खत्म हो जाएगा तब आप इसको
स्टेरलाइज करके ही वापस रखें।
दूसरा मुख्य सवाल आता है, इसके साइज के चुनाव का। आमतौर पर जो
महिलाएँ शादीशुदा नहीं हैं या सेक्सुअली एक्टिव नहीं हैं या कम एक्टिव हैं उनके
लिए स्मॉल साइज ठीक रहता है। जो महिलाएँ सेक्सुअली एक्टिव हैं, पर
बच्चों को जन्म नहीं दिया है, उनके लिए मीडियम और जो महिलाएँ एक या
दो बच्चों को जन्म दे चुकी हैं उनके लिए बड़ा साइज बेहतर रहेगा।
ऐसी महिलाएँ या लड़कियाँ जिन्हें बहुत ज्यादा रक्तस्त्राव होता है वह
भी बड़े साइज का चुनाव कर सकती हैं, जिससे बार–बार कप को खाली करने की
असुविधा से बच सकती हैं।
मेंस्ट्रूअल कप से जुड़ी एक और बात जो अक्सर लड़कियों को इसे इस्तेमाल
करने से रोकती है, वह है इसको स्टेरलाइज करना। हमारे समाज में जहाँ मासिक धर्म वाली
महिला या लड़की को आज भी धार्मिक स्थलों और किचन जैसी जगहों से दूर रखने की कोशिश
की जाती है, वहाँ किचन में मेंस्ट्रूअल कप को खाना बनाने वाली गैस चूल्हे पर
उबालने को लेकर कई माएँ या घर वाले आपत्ति कर सकते हैं। इसके बाजार में विकल्प
मौजूद हैं। इसको स्टेरलाइज करने के लिए भी कई प्रकार के यंत्र उपलब्ध हैं जिनमें
आप पानी भर के कप को साफ कर सकते हैं।
हालाँकि यह आपकी जेब पर भार को थोड़ा बढ़ा जरूर देगा। पर यदि आप एक
बर्तन बनाकर इसे रेगुलर गैस में उबाल कर इसे स्टेरलाइज करते हैं तो उसकी लागत भी
कम हो जाती है और इस तरह से इस्तेमाल करना पूरी तरह सुरक्षित है।
आमतौर पर मेंस्ट्रूअल कप ढाई सौ से तीन सौ रुपये तक में आते हैं। अगर
40 वर्षों तक मासिक धर्म से गुजरने वाली महिला चार कप इस्तेमाल करती है
तो उसका कुल खर्च करीब ग्यारह सौ रुपये मात्र आएगा। वहीं बात करें पैड्स की तो एक
औसत पैड की कीमत करीब पाँच रुपये होती है। यदि एक मासिक में 16
पैड इस्तेमाल करें तो लागत है, 80 रुपये। इस हिसाब से 40
सालों में कुल खर्च 38,400 बैठता है।
इन तथ्यों को जानने के बाद हमारे जेहन में सवाल उठना लाजिमी है कि
इतना सस्ता, स्वास्थ्याप्रद, सुविधाजनक और पर्यावरण अनुकूल साधन
हमारे पास उपलब्ध है तो सरकारी संस्थाएँ पहल ले कर इसका प्रचार–प्रसार क्यों नहीं
करतीं? जिस तरह पैड का
प्रचार करने के लिए पैडमैन फिल्म तक बन गयी? क्या इस सस्ते उपकरण के प्रचार के लिए कोई विज्ञापन तक नहीं बनाया जा
सकता? बिलकुल किया जा
सकता है, पर हमारी सरकार ऐसा करती नहीं। कारण साफ है, बड़ी–बड़ी
कम्पनियाँ जो इतने प्रकार के पैड्स/टैम्पून्स बना कर दिन–रात मुनाफा कमा रही हैं,
किसी
भी तरह के टिकाऊ साधन से क्या वह ठप नहीं हो जाएगा!
हमारी पूँजीपति प्रेमी सरकार ऐसा होने नहीं दे सकती। देश की बहुतायत
आबादी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती। उनका जीवनस्तर सुधारना या उन्हें सुविधा
पहुँचाना इन धन्नासेठों का मकसद नहीं है। यह आबादी उनके लिए मात्र सस्ता श्रम और
सस्ता वोट है, जिन्हें भूखा रखकर, 5 किलो राशन से उनका वोट खरीदा जा सकता
है।
एक तथ्य और है कि इस व्यवस्था में आप किसी भी समस्या का कोई टिकाऊ
समाधान नहीं देखेंगे। हमेशा आपको महँगे और क्षणिक उपाय बताए जाएँगे, जो
कुछ देर तो काम करेंगे और उन्हें बार–बार आपको खरीदना पड़ेगा या बार–बार इस्तेमाल
करना पड़ेगा, जिससे यह धंधे चलते रहते हैं।
इस कारण से जरूरी है कि हम इसी तरह एक दूसरे के साथ जरूरत की जानकारी
साझा करते रहें, एकजुट रहें तभी हम अपने लिए एक बेहतर कल का निर्माण कर सकते हैं।
–– अनुषा तिवारी
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