Thursday, September 5, 2024

सम्पादकीय, मुक्ति के स्वर अंक 27


अभी हाल ही में देश में 18वीं लोकसभा के लिए आम चुनाव सम्पन्न हुआ । पहली बार महिलाओं में चुनाव को लेकर अत्यधिक उत्साह दिखाई दिया । जहाँ पहले वे राजनीति या चुनावों के प्रति आमतौर पर उदासीन रहती थीं, इस बार सरकार की आर्थिक नीतियों और महँगाई से बदहाल होने के चलते उनमें रोष था, इसके अलावा प्रधानमंत्री के ऊटपटांग बयानों और भाजपा द्वारा लम्बे समय से महिलाओं को महज वोटर मानकर गाँव–मोहल्ले के स्तर तक उनके लिए कार्यक्रम (मुख्यत: कीर्तन मंडली, तीर्थ यात्रा, कलश यात्रा आदि) देते रहने, सभी पार्टियों द्वारा महिलाओं को लुभाने वाले नारों तथा टीवी, इन्टरनेट के प्रभाव में महिला वोटरों की संख्या बढ़ी । कहीं–कहीं तो पुरुष वोटरों की तुलना में महिला वोटरों का प्रतिशत ज्यादा रहा । 

 दूसरी ओर 2024 के आम चुनाव में 14 अलग–अलग राजनीतिक पार्टियों से देशभर में केवल 74 नयी महिलाएँ सांसद चुनी गयीं जो जो कुल सांसदों की संख्या का महज 13.6 प्रतिशत है । स्टेटिस्टा–डॉट–कॉम के अनुसार चुनाव में खड़े कुल उम्मीदवारों में महिलाओं का हिस्सा सिर्फ 10 प्रतिशत ही था । ये चुनाव अब तक के सबसे दिलचस्प चुनावों में से एक तो रहा, पर इसमें सत्ता पक्ष ने फूहड़ता और महिला विरोधी आचरण की सभी हदें पार कर दीं । तमाम बलात्कारियों या उनके रिश्तेदारों को टिकट दिये गये, प्रधानमंत्री ने खुद कर्नाटक में प्रज्ज्वल रेवन्ना जैसे बलात्कारी का चुनाव प्रचार किया जबकि उन्हें उसकी करतूतों के बारे में पहले से पता था। वे महिलाओं को डरा रहे थे कि विपक्षी गठबन्धन द्वारा उनका मंगलसूत्र, जो पितृसत्ता का प्रतीक है, छीन लिया जायेगा, हालाँकि इस देश में मंगलसूत्र सिर्फ मुट्ठी भर मध्य वर्ग की महिलाओं को ही नसीब है और वह भी टीवी सीरियल या फिल्मों के प्रभाव की बदौलत। 

पिछले कुछ सालों में विकट आर्थिक परेशानियों, साम्प्रदायिक राजनीति, और जमीनी हकीकतों ने निश्चय ही महिलाओं की चेतना को बढ़ाया है । लूट–खसोट पर आधारित चरम व्यक्तिवादी और व्यक्ति केन्द्रित राजनीति के खोखलेपन को उन्होंने अच्छे से महसूस किया । अब काफी महिलाएँ मानने लगी हैं कि उज्ज्वला या बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ कार्यक्रम महज जुमले हैं । चुनाव के समय स्वतंत्र यूट्यूब चैनलों के तमाम इण्टरव्यू में खुल कर सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की धज्जियाँ उड़ाती देखी गयीं । सच तो यह है कि गरीब तबके से आने वाली अधिकांश महिलाएँ समझ गयी हैं कि राम और मन्दिर उन्हें रोजी–रोटी नहीं देंगे । अयोध्या और काशी में भव्य मन्दिर निर्माण और राम पथ बनाने के नाम पर सैकड़ों घरों और दुकानों को उजाड़ा गया । वायरल वीडियो में बेघर–बार हुई बिलख–बिलख कर रोती महिलाओं के हिस्से मन्दिर निर्माण से भला क्या आया ? सिर्फ बर्बादी..  

जनता के आक्रोश और शक्ति ने भाजपा सरकार के तथाकथित विजय रथ का एक पहिया निकाल दिया है । सरकार अल्पमत में है और दो घटक दलों की बैसाखी पर टिकी है । 

 चुनाव के बाद नयी गठबन्धन सरकार बन गयी है पर यह शीशे की तरह साफ है कि मौजूदा चुनाव व्यवस्था किसी भी चोर, बदमाश, गुंडे, बलात्कारी को चुनाव लड़ने और जीतने का मौक़ा आसानी से दे देती है । पिछले 75 सालों में इसने राजनीतिक पार्टियों को इतना बेशर्म और ढीठ बना दिया है कि वे जनता को बेवकूफ बनाने के लिए किसी भी हद तक चली जाती हैं । वे चुनाव में जाति, धर्म, धन और बल का इस्तेमाल करती ही हैं, गुंडों और बलात्कारियों को, महिलाओं के खिलाफ लगातार अनर्गल प्रलाप करने वालों को भी खुलेआम टिकट दे देती हैं । 

गरीब महिलाएँ समझ रही हैं कि 100 रुपये का 5 किलो अनाज देकर उन्हें भिखारी बना दिया गया है जबकि बदले में महँगाई से उनकी कमर तोड़ दी गयी है तथा रोजगार और सामाजिक सुरक्षा देने की नैतिक जिम्मेवारी से सरकार ने बड़ी चालाकी से पल्ला झाड़ लिया है । दूर हँसदिहा और तमाम जंगलों की आदिवासी महिलाएँ न जाने कब से अपने जल–जंगल–जमीन को बचाने का आन्दोलन कर रही हैं । सड़क बनाने के नाम पर उत्तराखण्ड और हिमाचल में लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं और घर उजाड़े जा रहे हैं, उनका भी बुरा असर औरतों पर ही पड़ता है । 

भारत में 15–49 आयु की 57.2 प्रतिशत महिलाएँ खून की कमी (एनीमिया) की शिकार हैं, जो 2015–16 में 53.2 प्रतिशत की तुलना में अधिक है । अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार अभी भारत में सिर्फ 7.5 फीसदी महिलाएँ किसी तरह का रोजगार करती हैं । एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक, तमाम कानूनों के बावजूद भारत में 10 में से हर 3 महिला घरेलू हिंसा की शिकार होती है । घरेलू हिंसा के कई प्रकार हैं, इसमें शारीरिक हिंसा, भावनात्मक हिंसा, आर्थिक हिंसा, यौन हिंसा, ये सब आते हैं । 2019 में भारत में प्रति दिन बलात्कार के 87 केस दर्ज हुए । 

डीडब्लू (ऑनलाइन) में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनावों में जीतने वाले प्रत्याशियों में से 46 प्रतिशत ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं । लोकतंत्र में सुधार के मुद्दों पर काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने अपने अध्ययन में बताया है कि 543 जीतने वाले प्रत्याशियों में से 46 प्रतिशत (251) प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं । इसके अलावा सभी जीतने वाले प्रत्याशियों में 31 प्रतिशत (170) ऐसे हैं जिनके खिलाफ बलात्कार, हत्या, अपहरण जैसे गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज हैं । 

उसी रिपोर्ट में बताया गया है कि 27 जीतने वाले प्रत्याशी ऐसे हैं जो दोषी भी पाए जा चुके हैं और या तो जेल में बन्द हैं या जमानत पर बाहर हैं । चार जीतने वाले प्रत्याशियों के खिलाफ हत्या के मामले, 27 के खिलाफ हत्या की कोशिश के मामले, दो के खिलाफ बलात्कार, 15 के खिलाफ महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराध, चार के खिलाफ अपहरण और 43 के खिलाफ नफरती भाषण देने के मामले दर्ज हैं । 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किसी साफ पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी की जीतने की सम्भावना सिर्फ 4.4 प्रतिशत है, जबकि आपराधिक मामलों का सामना कर रहे प्रत्याशी की जीतने की सम्भावना 15.3 प्रतिशत है । 

रिपोर्ट आगे अत्यन्त विचलित करने वाले आँकड़े देती है । 

 बीजेपी के 240 विजयी प्रत्याशियों में से 39 प्रतिशत (94), कांग्रेस के 99 विजयी प्रत्याशियों में से 49 प्रतिशत (49), सपा के 37 में से 57 प्रतिशत (21), तृणमूल कांग्रेस के 29 में से 45 प्रतिशत (13), डीएमके के 22 में से 59 प्रतिशत (13), टीडीपी के 16 में से 50 प्रतिशत (आठ) और शिवसेना (शिंदे) के सात में से 71 प्रतिशत (पाँच) प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं ।  

आखिर भारत में चुनाव–दर–चुनाव ऐसे सांसदों की संख्या बढ़ती क्यों जा रही है ? क्या हम महिलाएँं इस संसद से अपने लिए कोई उम्मीद कर सकती हैं ? अगर यहाँ 33 प्रतिशत महिलाएँ भी चुन कर आ जाती हैं तो चंद दिखावटी सुधारों के अलावा यहाँ हमें भला क्या मिल सकता है ? इस व्यवस्था में जन भागीदारी वाले लोकतंत्र की तो कोई जगह है ही नहीं। साम्प्रदायिक फासीवादी राजनीति की अपराजेयता को चुनौती देने के लिए लोकतंत्र के चुनावी समर में भाग लेना तो ठीक था परन्तु पितृसत्ता से पूर्ण मुक्त तथा न्याय और बराबरी पर टिके समाज के निर्माण के लिए हमें इस दायरे से बाहर जाकर सोचना होगा । इस लक्ष्य को अपने जन संगठनों और जन आन्दोलनों के जरिये ही हासिल किया जा सकता है ।

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