22 अगस्त को नागालैंड और मणिपुर राज्य की नागा जनजाति की महिलाओं ने सीमा सुरक्षा बलों के सैनिकों की कलाई पर राखी बाँधने के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। बल्कि ऐसा ही कार्यक्रम पूरे देशभर में भी हुआ। सभी सैनिकों के लिए देशभर से उनके सम्मान में राखियाँ भेजी गयीं या स्थानीय महिलाओं द्वारा राखी बाँधने का कार्यक्रम कराया गया। अन्य जगहों पर इस हिन्दू त्यौहार और इसके तौर–तरीके को खूब सराहा गया। लेकिन नागालैंड और मणिपुर में यह एक विवादस्पद मुद्दा बन गया।
ऐसा क्यों हुआ? जहाँ एक तरफ सरकार की हिन्दुत्वादी संस्कृति और उसके त्यौहार मनाने के कार्यक्रम को देश के हर हिस्से में सराहा गया। वहाँ ऐसा क्या हुआ कि दोनों राज्यों में रहने वाली नागा महिलाओं के संगठन एनएमएस(नागा महिला एसोसिएशन) और जीएनएफ (ग्लोबल नागा फोरम ) ने इसे एक पाखण्डी कार्यक्रम घोषित कर दिया।
इतिहास के पन्नो में जितने खून के छींटे उत्तर भारत के राज्यों पर हैं उतने कश्मीर को छोड़कर अन्य किसी भी राज्य पर नहीं हैं। बन्दूकों के दम पर उत्तर पूर्व के राज्यों को भारतीय संघ में शामिल तो कर लिया गया। पर बन्दूक के शासन के खिलाफ विद्रोह होना तो लाजिमी है। उत्तर पूर्व ने ऐसी दहशतगर्दी अपने यहाँ कभी नहीं देखी थी। जबरदस्ती बन्दूक के शासन को चलाने के लिए 1958 से ही उत्तर पूर्व के कई राज्यों में अफ्सपा कानून लागू कर दिया गया। भारतीय सेना और सुरक्षा बलों को अपनी मनमानी करने की यहाँ खुली छूट मिली। बिना कोई कानूनी दखल के वे किसी पर भी गोली दाग सकते हैं। स्थानीय लोगों को अपने मानवाधिकार की रक्षा, जीवन की रक्षा के लिए भी भारतीय सेना के सामने भीख माँगनी पड़ती है। ऐसी स्थिति में जीते हुए इनसान शान्ति से ज्यादा दिन नहीं बैठ सकता। इसलिये भारतीय बलों और स्थानीय जनता के बीच संघर्ष और ज्यादा उग्र हो गया। स्थानीय संगठन, सेना के खिलाफ ज्यादा मुखर होकर कारवाई करने लगे।
2004 में मनोरमा नाम की लड़की के साथ भारतीय अर्द्धसैनिक बल के जवानों ने बलात्कर किया और उसकी हत्या कर सड़क पर फेंक दिया और न जाने ऐसी कितनी अनगिनत घटनाएँ आये दिन उत्तर पूर्व के राज्यों में रोज घटित होती रहीं। लेकिन इस घटना ने उत्तर पूर्व की महिलाओं की सब्र का बाँध तोड़ दिया और 12 महिलाओं ने नग्न होकर सीमा बल के मुख्यालय के सामने जोर–जोर चिल्ला कर अपनी आवाज बुलन्द की, कि आओ हमारा भी बलात्कार करो, मैं मनोरमा की माँ हूँ, मैं बहन हूँ। हमारी भी हत्या कर दो, हमे भी जान से मार दो, हमे भी यातनाएँ दो। भारतीय लोकतंत्र को भी इस दिन अपनी अस्मत छुपाने के लिए कोई जगह नहीं मिली। 17 साल बीत गये हैं, मनोरमा को न्याय मिलने की बात तो छोड़ ही दीजिये, उसके बरक्स वैसे ही वहशीपन की घटनाएँ और ज्यादा तेजी से हो रही हैं। अकेले असम पुलिस में 2006 से 2012 तक 7000 बलात्कर के और 11553 मामले अपहरण के दर्ज हुए।
एनएमएस(नागा महिला एसोसिएशन) की अध्यक्ष उम्बई ई मेरु और संयुक्त सचिव मालसवामथांगी लेरी ने नागा महिलाओं के द्वारा भारतीय सैनिकों को यूँ राखी बाँधना अपनी गुलामी को स्वीकार करने जैसा बताया। जो सैनिक किसी भी उम्र, जाति, मजहब की स्त्री को सिर्फ उपभोग करने की वस्तु समझते हों और बलात्कार कर नृशंस हत्याएँ करते हों वे हमारे भाई कैसे हो सकते हैं? अभी तक जहाँ अफ्सपा कानून को ज्यों का त्यों लागू रहने दिया गया हो और सैनिकों को खुलेआम महिलाओं से छेड़खानी की आजादी हो, वहाँ हम सरकार के झूठे ढकोसले में साथ कैसे दे सकते हैं। किसी भी सैनिक की कलाई पर राखी बाँधना उत्तर पूर्व की हर महिला के ऊपर बीती हर ज्यादती को भुलाना है और हमारे इतिहास का एक काला दिन है।
तमाम वादों के बाद भी अफ्सपा अभी तक उत्तर पूर्व के राज्यों में लागू है। कई सरकारें आयी, प्रधानमंत्री आये, उन्होंने अफ्सपा को हटाने के वादे किये। लेकिन वो वादे चुनावी वादों की तरह ही चुनाव से ऊपर नहीं उठ पाये। 16 साल तक इरोम शर्मिला के अफ्सपा के खिलाफ अनशन से भी भारतीय राज्य के सर पर जूँ तक न रेंगी। और अब जनजातीय लोगों को हिन्दू संस्कृति का जामा पहनाकर भाजपा सरकार अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास कर रही है। उत्तर पूर्व के लोगों की अपनी संस्कृति है, उनके यहाँ रक्षाबन्धन जैसे त्योहार हैं ही नहीं। लेकिन भारतीय सरकार अपने हिन्दुत्ववादी एजेंडे से उत्तर पूर्व में अपनी साख बचाये रखना चाहती है और ये मामला उसी तरह का एक प्रयास है। उत्तर पूर्व में शान्ति आज तक कायम हो ही नहीं सकी। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है एक तरफ आप उन पर बन्दूक के दम पर बेतहाशा जुल्म ढायें और दूसरी तरफ लोकतांत्रिक होने का ढोंग रचें।
भारतीय राज्य के द्वारा जो सितम आज उत्तर पूर्व की महिलाएँ, बच्चे और पुरुष झेल रहे हैं, यकीनन उसका बहुत बुरा खामियाजा भारतीय राज्य को झेलना पड़ेगा। क्योंकि बन्दूक के दम पर दहशतगर्दी का राज्य ज्यादा दिन तक कायम नहीं रखा जा सकता।
–– दिव्या
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