मरियामा
बा का लघु उपन्यास ‘एक बहुत लम्बा खत’
दुनियाभर में बहुत चर्चित रहा है। इस पर सैकड़ों शोधपत्र लिखे जा
चुके हैं। नारीवादी आन्दोलन में यह उपन्यास एक कीर्ति स्तम्भ की तरह है और अपने
पाठकों को किसी महिला के उन आयामों से परिचित कराता है जिसके बारे में बातेें करने
पर अकसर पाबन्दी आयद कर दी जाती है। लेकिन मरियमा बा ने अपने और अपनी सहेली के दुख–दर्द को इस तरह उपन्यास में गुथा है कि पाठक बस पढ़ता चला जाये। यह पाठक के
मन पर गहरा असर छोड़ता है। पढ़ते–पढ़ते पाठक की आँखें छलछला
जाती हैं और कठोर दिल भी मोम की तरह पिघल जाता है।
सेनेगल
पश्चिमी अफ्रीका का समुद्र से सटा एक सुन्दर देश है। यह फ्रांस के अधीन एक गुलाम
देश था। यहाँ वालू, कैयोर, बाओल और जोसेफ जैसे छोटे–छोटे राज्य थे, जिन्हें पराजित करके फ्रांस ने इसे गुलाम बना लिया। यूरोपीय देशों ने
सेनेगल को दास व्यापार की मंडी बना दिया। इस वजह से सेनेगल के मूल निवासियों को
बेपनाह तकलीफों का सामना करना पड़ा। सेनेगल ने 1960 में स्वाधीनता हासिल कर ली,
लेकिन उसके बाद भी सेनेगल अपनी आजादी और बराबरी के लिए जद्दोजहद
करता रहा। ‘एक बहुत लम्बा खत’ उपनिवेशवादी
छत्रछाया और उसके बाद के दौर में अफ्रीकी महिलाओं की स्थिति को केन्द्र में रखकर
लिखा गया है। उपन्यास की मुख्य किरदार रामातुलाये है जो अपनी बचपन की सहेली आईसतु
को एक लम्बा खत लिखती है। इस खत में वह उन दोनों सहेलियों के बचपन और उसके बाद के
दिनों की यादों को साझा करती है, दोनों के प्रेम सम्बन्धों
को बताती है और शादी के बाद जो दुर्भाग्य के पहाड़ उन दोनों के ऊपर टूट पड़े थे,
उनके बारे में विस्तार से बयान करती है।
मुस्लिम
परिवार में जन्मी रामातुलाये को सेनेगल की राजधानी डकार के मजहबी कायदों और
रवायतों का पालन करना पड़ता था, चाहे पढ़ाई का
मसला हो, मनपसन्द शादी का मसला हो, पति
की दूसरी शादी का मसला हो या फिर पति कि मृत्यु के बाद विधवा रहने का मसला हो। इस
खत के माध्यम से रामातुलाये अपनी ही नहीं बल्कि सेनेगल की महिलाओं का भी दुख बयान
करती है। रामातुलाये जब यह खत लिखती है तब वह अपनी तुलना अपनी सहेली आईसतु से करती
है और इस बात का अहसास खत के जरिये करती है कि आईसतु अपनी जिन्दगी वैसे ही जी रही
है जैसा वह सपना देखती थी। लेकिन रामातुलाये अपनी पारिवारिक जिन्दगी से कभी खुद को
काट नहीं पाती और बड़ी मुस्तैदी से अपने पति की मृत्यु के बाद अपने ससुराल वालों को
और उसके पति द्वारा दूसरी शादी वाले ससुराल वालांे का भी ख्याल रखती है।
यह
उपन्यास रूढ़िवादिता और पति द्वारा एक से ज्यादा शादी के बाद पहली पत्नी को छोड़
देने,
अफ्रीकी महिलाआंे के साझा दुख–दर्द को केन्द्र
में रखकर लिखा गया है। इस खत में रामातुलाये सेनेगल की महिलाओं पर मुसीबतों की
काली छाया को दिखाती है जो पुरुषों के अत्याचार से उपजी है। खत की शुरुआत पति की
अचानक मौत से होती है। सेनेगल में विधवा महिलाओं के साथ समाज में बहुत बुरा सुलूक
किया जाता है। उसे चार महीने इद्दत में रहना पड़ता है और रूढ़िवादी कायदे–कानूनों का सामना करना पड़ता है।
रामातुलाये
याद दिलाती है कि किस तरह से दोनों सहेलियों ने बचपन में स्कूली पढ़ाई से लेकर उच्च
शिक्षा प्राप्त की। दोनों ने प्रेम किया और शादी को लेकर परिजनों की परवाह किये
बिना दोनों अपनी पसन्द की शादी करती हंै। शिक्षिका के रूप में नौकरी करती हंै।
दोनों के पति यानी रामातुलाये के मोदु फाल और आईसतु के मावदो ढलती उम्र में ही
छोटी उम्र की लड़कियों से दूसरी शादी कर लेते हंै। अपना दुख साझा करते हुए वे बताती
हंै कि किस तरह से मोदु 25 साल पुरानी शादी तोड़कर अपने से बहुत कम उम्र की लड़की से
शादी कर लेता है। यह शादी भी वह उससे छुप–छुपा
कर करता है। वह लड़की उसकी बेटी दाबा की उम्र की होती है जिसके माँ–बाप को लालच देकर वह उससे निकाह कर लेता है। पर उसकी खुद हिम्मत नहीं होती
कि वह रामातुलाये को बता सके। उससे जन्मे 12 बच्चों के भरण–पोषण
का भार रामातुलाये अकेली उठाती है। गजब हिम्मत वाली महिला है वह! मोदु उसकी मदद के
लिए कभी आगे नहीं आता है।
दूसरी
ओर मावदो अपनी माँ के दबाव के चलते दूसरी शादी करता है। रामातुलाये और आईसतु के
व्यवहार में बहुत फर्क दिखता है। रामातुलाये पारिवारिक सम्बन्धांे में समझौते करती
है जबकि आईसतु परम्परा के बंधन को तोड़ती हुई आगे निकल जाती है और अपनी पसन्द की
जिन्दगी का चुनाव करती है। वह पति से सम्बन्ध तोड़कर अमरीका में जाकर नौकरी करना
शुरू करती है, जबकि मोदु की मृत्यु के बाद भी
उसका जेठ और उसका पुराना प्रेमी उससे शादी करने का प्रस्ताव रखता है जिसे
रामातुलाये ठुकरा देती है, क्योंकि जिस तरह उसने खुद को
मुसीबतांे से निकाला था वह नहीं चाहती थी कि दूसरी शादी करके वह उनकी पहली बीवी की
जिन्दगी में मुसीबत बने।
हालाँकि
रामातुलाये परम्पराआंे को तोड़ नहीं पाती लेकिन फिर भी वह प्रगतिशील सोच रखती है।
उसकी प्रगतिशील सूझबूझ तब सामने आती है जब उसकी बेटी शादी से पहले ही गर्भवती हो
जाती है और वह अपनी बेटी को सम्भालती भी है। रामातुलाये की जिन्दगी सुख से दुख की
ओर बढ़ते हुए दिखाई देती है। लेकिन रामातुलाये साहसी है और अकेले ही हर मुसीबत का
सामना करती है। वह आधुनिक तरीके से बच्चों की परवरिश करती है। विधवा होने का शोक
मनाने की जगह जिन्दगी को भरपूर जीती है और मोटर–गाड़ी भी चलाना सीखती है। लेकिन फिर भी वह इस सच को कबूल करती है कि उसकी
तुलना में आईसतु एक बेहतर जिन्दगी गुजारती है क्योंकि वह रूढ़िवादी सम्बन्धों के
आगे नहीं झुकती है।
यह
पुस्तक ऐसी दो महिलाओं की कहानी बताती है जिनमें से एक परम्पराओं के बंधन से बँधी
हंै और दूसरी पुराने सम्बन्धांे को तोड़कर जिन्दगी की नयी राह चुनती हंै और प्रेरणा
की स्रोत बनती हंै। हिन्दी अनुवाद की भाषा एकदम सहज और दिलचस्प हैै। यह कहानी भले
ही अफ्रीकी देश सेनेगल की है लेकिन इसमें हमारे समाज में औरतों की स्थिति की भी
झलक मिलती है। यह उपन्यास औरतों के हर हाल में जीने और कठिनाइयों का सामना करने का
हौसला देता है।
पुस्तक
: एक बहुत लम्बा खत
लेखिका
: मरियामा बा
अनुवाद
: दिगम्बर
प्रकाशक
: गार्गी प्रकाशन
1/4649/45बी, गली न– 4,
न्यू मॉडर्न शाहदरा, दिल्ली–110032
कीमत
: 60 रुपये
–– मारिया खुर्शीद
(मुक्ति के स्वर अंक 21, मार्च 2019)
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