Saturday, March 2, 2019

भारतीय समाज में नारी का सम्मान और स्थान

हमारे समाज में महिलाओं को नारी शक्ति” कहा गया है। वह एक जननी भी है। माँ के रूप मेंकभी एक बहन के रूप में कभी एक पत्नी के रूप मेंएक बेटी के रूप में––– सारे देश को और सारे समाज को एकता के सूत्र में बाँधती है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी देश का भविष्य महिलाओं पर भी निर्भर करता है। रानी लक्ष्मी बाईझलकारी बाईअजीजन बाईबेगम हजरत महलअवन्ती बाईसावित्री बाई फूले आदि ऐसी महिलाएँ थीं जिन्होंने अपने कामों से महिलाओं का सम्मान बढ़ाया। महिलाएँ किसी भी प्रकार पुरुषों से कमतर नहीं हैं। आज की महिलाओं ने सिद्ध कर दिया है कि अगर उन्हें पर्याप्त मौका मिलेे तो वे समाज को उन्नति के मार्ग पर ले जाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।
एक तरफ देश में कुछ गिनीचुनी महिलाएँ हैं जो आगे बढ़ती जा रही हैं और सफलता की ऊँची सीढ़ियाँ चढ़ती जा रही हैं तो दूसरी तरफ वे करोड़ों महिलाएँ हैं जो घरों में बन्द होकर रह गयी हैं। पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ के नीचे उनके सपने अधूरे रह गये हैं। कुछ महिलाएँ ऐसी हंैजिन्हें पढ़नेलिखने का मौका नहीं मिला। उन्हें हमेशा ही यही बताया गया कि उनके जीवन का उद्देश्य घर का काम करनापरिवार के हर सदस्य की जरूरत को पूरा करना और बच्चे पालना है।
खुद मनुष्य की जननी होकर वह अपनी पहचान से इतनी दूर क्यों हैवह यह समझ नहीं पाती है कि अपने सपने पूरे करने के लिए वह आखिर क्या करेआज भी बचपन से लड़की को लड़की होने का एहसास दिलाया जाता है। इतना ही नहीं लड़कांे को भी लड़केलड़की का भेद समझा दिया जाता है।
एक तरफ लड़की को घर के कामकाज सिखाये जाते हैं तो दूसरी तरफ लड़के की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। शुरू से ही उन्हें कमजोर बता दिया जाता है। कोई भी उन्हें आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा नहीं देता। जब तक वह बड़ी होती हैखुद को समझने लायक होती हैतब तक बहुत देर हो जाती है। उसकी शादी कर दी जाती है। उसकी जिम्मेदारियाँ और फर्ज तो घर के बच्चों को भी पता होता हैलेकिन उसके सपनों से सभी अनजान होते हैं। वह खुद भी इस बात से अनजान होती है कि आखिर उसके अधिकार क्याक्या हंैहंै भी या नहीं।
यह भी एक विडम्बना ही है कि भारतीय समाज में महिलाओं को एक तरफ नारी शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है तो दूसरी ओर उसे बेचारी अबला’ भी कहा जाता है। इन्हीं विडम्बनाओं के बीच वह अपनी क्षमताओं को पहचान नहीं पाती। आज भी वह अपनी पहचान से बहुत दूर है।
डॉ– अम्बेडकर ने कहा था कि मैं किसी समाज या समुदाय की प्रगति महिलाओं की प्रगति से मापता हूँ। डॉ– अम्बेडकर ने सही कहा हैक्योंकि देश की आधी जनसंख्या यानी महिलाएँ जितनी आत्मनिर्भर होंगीदेश उतनी ही तरक्की करेगा।
इसके लिए महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही पहलकदमी करनी होगी। पुरुषों को भी महिलाओं के साथ घर की जिम्मेदारियों में हाथ बँटाना चाहिए। महिलाओं के विकास के लिए हमें अपने विचारों में बदलाव लाना होगा। कहा जाता है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। हमें अपनी पुरानी कुरीतियों और मूल्यमान्यताओं को छोड़ना होगा। नयी विचारधारा की रोशनी में महिलाओं के हक की लड़ाई लड़नी होगी।
आज जरूरत है महिलाओं को साहस के साथ आगे बढ़ने की। अपने अधिकारों को पहचानने की। सबसे पहले महिलाओं को खुद सशक्त और आत्मनिर्भर बनना होगा। उन्हें ये जानना होगा कि उनके अन्दर असीम क्षमताएँ हैंउनका उन्हें उपयोग करना है। उन्हें जानना होगा कि हर चुनौती का सामना करने में वे सक्षम हैं। 16 दिसम्बर 2013 को निर्भया कांड के खिलाफ जबरदस्त आन्दोलन के बाद पूरे देश में महिलाओं में एकजुटता की जो लहर उठी थीउसे एक मजबूत धारा में बदलना ही आज समय की माँग है। यह काम अकेलेअकेले नहीं होगा। हमें आपस में मिलकर सही विचारों के आधार पर अपना मजबूत संगठन बनाना होगा।

–– नीलम राणा

(मुक्ति के स्वर अंक 21, मार्च 2019)

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