Thursday, September 12, 2019

मैं हैरान हूँ


 — महादेवी वर्मा,
(इतिहास में छिपाई गई एक कविता) 

'' मैं हैरान हूं यह सोचकर , 
किसी औरत ने क्यों नहीं उठाई उंगली ?  
तुलसी दास पर ,जिसने कहा , 
"ढोल ,गंवार ,शूद्र, पशु, नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।"

मैं हैरान हूं , 
किसी औरत ने
क्यों नहीं जलाई "मनुस्मृति"
जिसने पहनाई उन्हें
गुलामी की बेड़ियां ? 

मैं हैरान हूं , 
किसी औरत ने क्यों नहीं   धिक्कारा ?  
उस "राम" को
जिसने गर्भवती पत्नी सीता को , 
परीक्षा के बाद भी
निकाल दिया घर से बाहर
धक्के मार कर।

किसी औरत ने लानत नहीं भेजी
उन सब को, जिन्होंने
" औरत को समझ कर वस्तु"
लगा दिया था दाव पर
होता रहा "नपुंसक" योद्धाओं के बीच
समूची औरत जाति का चीरहरण ? 
महाभारत में ? 

मै हैरान हूं यह सोचकर , 
किसी औरत ने क्यों नहीं किया ? 
संयोगिता अंबा -अंबालिका के
दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध
आज तक !

और मैं हैरान हूं , 
इतना कुछ होने के बाद भी
क्यों अपना "श्रद्धेय" मानकर
पूजती हैं मेरी मां - बहने
उन्हें देवता - भगवान मानकर? 

मैं हैरान हूं, 
उनकी चुप्पी देखकर
इसे उनकी सहनशीलता कहूं या
अंध श्रद्धा , या फिर
मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा ?'' 

{महादेवी वर्मा जी की यह कविता, किसी भी पाठ्य पुस्तक में नहीं रखी गई है,क्यों कि यह भारतीय  संस्कृति पर गहरी चोट करती है ?}

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