आज भारत समेत पूरे दुनिया में कैंसर एक भयावह बीमारी के रूप में हमारे सामने खड़ी है। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जिसने किसी अपने प्रिय को कैंसर की वजह से न खोया हो। हाल ही में मेरी एक चाची जिनकी उम्र महज 52 साल थी, उनकी मृत्यु ब्रेस्ट कैंसर की वजह से हुई है और मेरी एक सहेली ब्लड कैंसर से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच झूल रही है जिसकी उम्र अभी मात्र 25 वर्ष है।
कैंसर का इलाज इतना महँगा है कि इसमें अक्सर लोग मरीज को बचा नहीं पाते हैं और ऊपर से पूरा परिवार कर्जे और गरीबी के दलदल में फँस जाता है। बीमारी का इलाज करवाने के दौरान अपनी जमीन–मकान तक बेचना या गिरवी रखना पड़ता है। सीधे शब्दों में कहें तो पूरा परिवार बर्बादी की कगार पर खड़ा हो जाता है।
कैंसर महिलाओं और पुरुषों दोनों में ही बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। हमारे देश में हर साल कैंसर के 15 लाख नये मामले दर्ज होते हैं।
“द लैंसेट अंकोलॉजी” में छपी रिपोर्ट के अनुसार जहाँ दुनिया भर में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में 25: अधिक कैंसर पाया जाता है वहीं भारत में यह आंकड़ा महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा है।
आज समाज में जाँच की जाये तो हर 10 व्यक्ति में से एक को कैंसर होने की सम्भावना है। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को 60 में से एक को और शहरी स्तर पर 22 में से एक महिला को कैंसर है। पिछले 6 साल में महिलाओं के बीच कैंसर की दर में तेजी से उछाल आया है। महिलाओं में मुख्य रूप से स्तन, सर्वाइकल, ओवेरियन, गर्भाशय, मुँह और मसूड़े का कैंसर होता है।
70: कैंसर से पीड़ित महिलाओं में स्तन, सर्वाइकल, ओवेरियन और गर्भाशय का कैंसर है। जिसका इलाज से बचाव कर पाने की गुंजाइश सबसे ज्यादा होती है। महिलाओं में स्तन कैंसर 27: है और सर्वाइकल कैंसर 23: है।
बच्चेदानी के मुँह में होने वाले कैंसर से ही भारत में हर साल लगभग 73,000 महिलाओं की जान चली जा रही है। गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से 15 से 45 उम्र की महिलाएँ सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। हर 8 मिनट में एक महिला की सर्वाइकल कैंसर से जान जा रही है।
महिलाएँ अपने शरीर का इतना कम ध्यान रखती हैं कि खासकर वह अपने प्रजनन या यौन सम्बन्धी अंगों में होने वाली किसी भी समस्या को लगातार छुपाती रहती हैं जिसकी वजह से किसी भी प्रकार की बीमारी बढ़ती जाती है।
हमारे देश में आज भी मात्र 18: महिलाएँ ही सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल कर पाती हंै। बाकी की महिलाएँ आज भी पुराने गन्दे कपड़े या एक ही कपड़े को बार–बार धोकर इस्तेमाल करती हैं जिसके चलते योनि या गर्भाशय के मुख पर कैंसर का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है। औसतन 1 महीने के सेनेटरी पैड का खर्चा 50 रुपये होता है और घर में अगर दो महिलाएँ भी हैं तो 100 रुपये खर्च बढ़ जाता है। जिनकी मासिक आय 100 रुपये खर्च करने के योग्य न हो वह कहाँ से सेनेटरी पैड का इस्तेमाल कर पाएँगी, ऊपर से हमारे देश की सरकार ने सेनेटरी पैड पर 12 परसेंट टैक्स लगाया है, जबकि अभी हाल ही में एक खबर आयी है कि स्कॉटलैंड की सरकार ने माहवारी से सम्बन्धित सभी प्रोडक्ट, जैसे– सेनेटरी पैड, महावारी कप, टेंपून्स इत्यादि को सभी महिलाओं के लिए मुफ्त कर दिया है। महिलाओं को यूरीन इन्फेक्शन भी बहुत ज्यादा होता है। काम की जगह और घर के बाहर गन्दे सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करने के कारण भी उन्हें तुरन्त इन्फेक्शन लग जाता है।
कैंसर जाँच के लिए जो ब्लड टेस्ट, डीएनए टेस्ट, बोन मैरो टेस्ट और लिक्विड बायोप्सी इत्यादि किये जाते हैं, उनका खर्च खासकर प्राइवेट अस्पतालों में बहुत ज्यादा है और बहुत से सरकारी अस्पतालों में ये टेस्ट मौजूद ही नहीं हंै, जिसकी वजह से प्राइवेट लैब या अस्पतालों में ये टेस्ट करवाने पड़ते हैं। सरकारी आँकड़ों के अनुसार हमारे देश में लगभग 80 प्रतिशत लोग 20 रुपये रोजाना पर गुजारा करते हैं। ऐसे में लोग कैसे प्राइवेट अस्पतालों में जा पाएँगे। इसके चलते समय पर बीमारी का पता चलना बेहद मुश्किल काम है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो 80–100 किलोमीटर चलने के बावजूद एक ढंग का सरकारी अस्पताल और डॉक्टर नहीं मिलता।
महिलाओं से यौन और प्रजनन सम्बन्धी स्वास्थ्य पर खुलकर बातचीत के कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए। महिला स्वास्थ्य को लेकर सरकार को मुफ्त कैंप लगाने चाहिए व सरकार द्वारा एचपीवी टीकों की मुफ्त व्यवस्था होनी चाहिए। कैंसर की मुफ्त जाँच, इलाज केन्द्र और डॉक्टर बढ़ाया जाना जरूरी है। महिलाओं के बीच सामाजिक तौर पर उनकी चेतना को उन्नत किया जाये, जिससे वे खुद अपनी जान की अहमियत को समझें और घर के अन्य सदस्यों को भी उनके स्वास्थ्य और दिनचर्या को लेकर संवेदनशील होकर सोचना जरूरी है।
– स्वाति
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