Friday, January 7, 2022

लॉकडाउन में छिनती नौकरियाँ



अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (2021) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा 9–6 गुना ज्यादा काम करती है। पर उन्हें इस काम के बदले कम वेतन मिलता है। कोरोना महामारी में नौकरियाँ बहुत तेजी से घटीं जिससे लाखों करोड़ों की संख्या में लोग बेरोजगार हुए हैं। लेकिन सबसे ज्यादा महिलाएँ बेरोजगार हुई हैं।
कोरोना महामारी में महिलाओं की स्थिति इतनी ज्यादा खराब हुई है कि चारों तरफ हताशा और निराशा के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा है। हर जगह पर हर तबके की महिलाओं का शोषण हो रहा है। फिर वे चाहे सफाई कर्मचारी हों या खेती और दिहाड़ी मजदूरी करने वाली या घरेलू काम करने वाली महिलाएँ हों। लॉकडाउन में नौकरी छूट जाने पर वे मानसिक और भावनात्मक रूप से टूट गयीं, पैसे न होने के चलते उन्हें भारी मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसी ही एक घटना हमारे पड़ोस में एक 45 साल की महिला के साथ घटी, जिनके 3 बच्चे हैं। पति और बड़ा बेटा मजदूरी करते थे, लॉकडाउन में दोनों की नौकरी छूट गयी और पति की कोरोना से मौत भी हो गयी। पति की मृत्यु के बाद वे बहुत बीमार रहने लगीं, तंगी के चलते इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे। उनकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी और ऊपर से घर–गृहस्थी और बच्चों की जिम्मेदारी। लॉकडाउन के बाद भी उनके  बेटे को वापस नौकरी पर नहीं बुलाया गया, जिसके कारण घर की आर्थिक स्थिति बहुत ही बिगड़ गयी, यहाँ तक कि खाने के भी लाले पड़ गये। मुश्किल से उस परिवार का गुजारा हुआ। हम समझ सकते हैं कि उस माँ पर क्या गुजर रही होगी जिसकी आँखों के सामने उसके बच्चे भूख से तड़प रहे थे। 
यह केवल एक घर की कहानी नहीं है। अगर पूरे देश के आँकड़ों पर गौर करें तो हालात इससे भी बदतर है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2021 में 83 प्रतिशत महिलाओं को नौकरियों से बाहर किया गया, जबकि पुरुषों के लिए यह आँकड़ा 31–6 प्रतिशत है और लॉकडाउन के बाद की स्थिति में अक्टूबर–नबम्बर में महिलाओं की बेरोजगारी दर बढ़कर 54–7 प्रतिशत हो गयी, वहीं पुरुषों की बेरोजगारी दर 23–2 प्रतिशत ही थी। कोरोना से पहले महिलाओं की बेरोजगारी दर 25–6 प्रतिशत थी जबकि पुरुषों की 8–7 प्रतिशत थी।
सेंटर फॉर मॉननिटरिंग इंडियन इकोनामी के आँकड़ों से पता चलता है कि कोरोना की दूसरी लहर में बेरोजगारी दर में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। भारत में कोरोना काल में फरवरी 2021 में 1–89 करोड़ लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा जिससे बेरोजगारी दर 27 प्रतिशत हो गयी, जबकि पहली लहर 2020 में बेरोजगारी दर 20–9 प्रतिशत थी।
लॉकडाउन के चलते 2020 में देश के करीब 53 हजार होटलों व 5 लाख रेस्टोरेंटों में ताला पड़ गया। पूरे देश में इससे करीब 3 करोड़ लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ है। उत्तर प्रदेश के करीब 20 हजार तथा लखनऊ के लगभग 850 होटल बन्द हो गये, जिसके कारण मजदूरी करने वाली महिलाएँ, सफाई कर्मचारियों, कारखानों में काम करने वाली महिलाएँ, बच्चों की देखरेख करने वाली आया, छोटे–छोटे ढाबों, होटलों, होस्टलों में खाना बनाने वाली महिलाओं की नौकरियाँ उजड़ गयीं, जिससे उन्हें अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ा। घर का खर्चा, बच्चों की पढ़ाई, मकान का किराया, बिजली का बिल जैसी जरूरतें पूरी करने में वे पूरी तरह से असमर्थ रहीं। 
नौकरियों के लिए गाँव से आने वाली महिलाएँ दिहाड़ी या मासिक वेतन पर उत्पादों की पैकिंग और कपड़ों की सिलाई–बुनाई जैसे काम करती हैं। इससे वे अपने गृहस्थ जीवन की जरूरतों की भरपायी करती हैं, लेकिन इस महामारी से लगे लॉकडाउन के कारण इन्हें अपनी नौकरी के साथ–साथ घर का किराया न दे पाने के कारण कई मकान मालिकों ने घर से बाहर निकाल दिया। 
यूनिवर्सिटी ऑफ मेनचेस्टर ग्लोबल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट की प्रोफेसर बीना अग्रवाल के अनुसार गुजारे भर कमाई वाली गरीब महिलाओं की छोटी–मोटी बचत भी खत्म हो गयी। बहुत से परिवार कर्ज के जाल में फँस गये और उन्हें अपनी सीमित सम्पत्ति जैसे कि छोटे जानवर, आभूषण और यहाँ तक कि अपने औजार या गाड़ियाँ बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा है। सम्पत्ति का नुकसान उनके आर्थिक भविष्य को गम्भीर खतरे में डाल रहा है और उन्हें विनाश के कगार पर ला पटका है।
वास्तव में, पुरुषों की नौकरी जाने पर भी महिलाएँ गहरे रूप से प्रभावित होती हैं। उदाहरण के लिए, बेरोजगार पुरुष प्रवासियों के अपने गाँवों में लौटने से स्थानीय नौकरियों में भीड़भाड़ हो गयी है। छोटे कस्बों में पहले जो काम औरतें करती थीं वे अब पुरुषों के हिस्से आ गयी हैं। महिलाओं के घर के काम का बोझ–– खाना बनाना, बच्चों की देखभाल, जलावन की लकड़ी और पानी लाना भी पुरुषों के लौटने से काफी बढ़ गया है। भोजन की कमी का बोझ भी महिलाओं पर ही पड़ा है।
तो हम यह देख सकते हैं कि किस तरह से पिछले दो सालों से लॉकडाउन में लोगों ने कितनी नौकरियाँ गवाई होंगी। जो भी बची–खुची नौकरियाँ थी, वे कोरोना काल की दूसरी लहर के बीच नौकरियों के संकट को उजागर करती है। 
मुनाफाखोर व्यवस्था दिन पर दिन रोजगार खत्म करती जा रही है। हमें इसे रोकने के लिए संगठित होकर सवाल उठाने की जरूरत है।

–– कुमकुम

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