Tuesday, October 1, 2024

मैंने तोड़ी से सदियों से सीखी चुप्पी

 

मैं आजाद होना चाहती हूँ

इसका अर्थ यह तो नहीं,

मैं तुमसे मुक्त होना चाहती हूँ

न ही आजाद होने का अर्थ है

तुम्हारे प्यार से मुक्त होना

मैं तो बस

प्यार करने की हकदार होना चाहती हूँ

खुद प्यार करना चाहती हूँ

 

मैंने कब नकारे हैं रिश्ते ?

कब तोड़े हैं नेह के धागे ?

मैंने तो तोड़ी से सदियों से सीखी चुप्पी

पूछा है गार्गी का सवाल, माँगा है तर्क का जवाब

इसका यह अर्थ तो नहीं तुम दे दो मुझे शाप

कि भंग हो गया है आस्था का कौमार्य

कि टूट गया है विश्वास का पुंसत्व

 

रिश्ता कहीं बेड़ी न बन जाय

मैं तो बस

बाखबर होशियार रहना चाहती हूँ

शापों की श्रृंखला का बहिष्कार करना चाहती हूँ!

–– रमणिका गुप्ता

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