संगठित और असंगठित क्षेत्र में रोजगार की स्थिति अलग–अलग है। संगठित
क्षेत्र में कामगार मजदूरों को रोजगार की सुरक्षा, स्वास्थ्य
सुविधा, अवकाश, पेंशन, भत्ते, काम के निश्चित घण्टे और अन्य सुविधाएँ दिए जाने के प्रावधान हैं।
वहीं अगर असंगठित क्षेत्र की बात करें तो यहाँ मजदूर इस प्रकार के प्रावधान से
पूरी तरह वंचित हैं। असंगठित क्षेत्र में अलग–अलग श्रेणी के मजदूर आते हैं,
जैसे––
सड़कों पर सफाई करने वाले, बीड़ी बनाने वाले, घरों
में काम,–– जैसे बर्तन धोना, खाना बनाना, घरों या फैक्ट्रियों
में सिलाई–कढ़ाइ–बुनाई करने वाले, निर्माण कार्य में ईंट पकड़ाने वाले, ईंट–भट्ठों
पर मजदूरी करने वाले, घरों में पैकिंग का काम करने वाले, ठेका मजदूर,
ठेले
वाले या फेरीवाले इत्यादि।
अब अगर असंगठित क्षेत्र में मजदूर महिलाओं की स्थिति पर अध्ययन किया
जाये तो भारत में कुल कामगारों का 31 फीसदी महिलाएँ हैं जिनमें से 94
प्रतिशत महिलाएँ असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं। ये महिलाएँ अनेक प्रकार की
समस्याओं, असुविधाओं व असुरक्षा का सामना करती हैं और कार्यस्थल पर प्रतिदिन
शोषण और उत्पीड़न का शिकार होती हैं।
कार्यस्थल पर असुरक्षा
अक्सर असंगठित क्षेत्र की महिलाएँ अपने कार्यस्थल पर खुद को
असुरक्षित महसूस करती हैं, क्योंकि जहाँ वे काम करती हैं वहाँ के
पुरुष कर्मचारियों और मालिकों का बर्ताव उनके प्रति बहुत खराब रहता है।
हाल ही में गुड़गाँव में एक महिला जो कि आवासीय अपार्टमेंट में घरेलू
कामगार हैं, उन्होंने बताया कि सुरक्षा गार्ड ने उनके साथ बलात्कार किया। वह
प्रतिदिन अपने कार्यस्थल पर आते–जाते भद्दी टिप्पणियों का शिकार होती थी। उन्होंने
कहा कि हम महिलाएँ अपनी गरीबी और कलंक के डर से अपने साथ हो रहे उत्पीड़न को सहती
हैं और कभी अपने साथ हो रहे अपराधों के बारे में किसी को नहीं बतातीं। ‘वुमन
राइट्स’, ‘मी–टू’ जैसे आन्दोलन का हमारी जैसी महिलाओं के लिए कोई मतलब नहीं है।
न जाने महिलाओं को घर से कार्यस्थल तक जाने वाले रास्ते में कितनी प्रकार की
छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता है। इस तरह की घटनाएँ महिलाओं की सुरक्षा को लेकर
लगातार सरकार की असफलता को दर्शाती हैं।
कामकाजी महिलाओं को हो रही असुविधा और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ
महिलाएँ अक्सर अपने कार्यस्थल पर अनेक प्रकार की असुविधाओं का सामना
करती हैं। कार्यस्थल पर शौचालय की कमी के कारण महिलाओं को इधर–उधर भटकना पड़ता है
या फिर अधिकतर उन्हें गंदा शौचालय इस्तेमाल करना पड़ता है, जिसके कारण
उन्हें यूटीआई (यूरिनरी ट्रैक इनफेक्शन) जैसी बीमारी होने लगती है। इससे भी बदतर
हालत उन महिला श्रमिकों की है जो निर्माण कार्यों में ईटें, रेत, मिट्टी
पकड़ाने का काम करती हैं। ये महिलाएँ अपने कार्यस्थल पर शौचालय की कमी के कारण
ज्यादा समय तक अपने आप को पेशाब करने से रोके रखती हैं, जिसके कारण
उन्हें ब्लैडर में स्ट्रैचिंग और किडनी में स्टोन जैसी बीमारियों का सामना करना
पड़ता है। भारत में लगभग 70 लाख से अधिक श्रमिक बीड़ी बनाने का काम
करते हैं। इनमें से ज्यादातर महिलाएँ हैं। 96 प्रतिशत
महिलाएँ घरों में बीड़ी बनाने का काम करती हैं और 4 प्रतिशत
महिलाएँ कारखानों में। बीड़ी बनाने वाले मजदूर मुश्किल से प्रति 500
बीड़ी का 20 रुपये पाते हैं। इस काम की वजह से उन्हें सांस लेने में तकलीफ,
जोड़ों
में दर्द जैसी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ हो जाती हैं। वहीं दूसरी तरफ जो
महिलाएँ सिलाई, कढ़ाई, बुनाई का काम करती हैं, उन्हें कार्य करने के लिए पर्याप्त
रोशनी न मिलने की वजह से आँखों में समस्याएँ होने लगती है और बहुत कम उम्र में ही
उनकी आँखों की रोशनी धीमी पड़ जाती है।
हाल ही में महाराष्ट्र के बीड जिले में 3 सालों में लगभग
4605 महिलाओं के गर्भाशय निकाले गये। इस घटना का विस्तार से अध्ययन करने
पर पता चला कि बीड जिले में गन्ना मजदूरी जैसे अन्य काम करने वाली महिला मजदूरों
को उनकी शारीरिक जाँच के बहाने ले जाया गया और उनकी जानकारी के बिना उनके गर्भाशय
निकाल दिये गये, क्योंकि महिलाओं को माहवारी के समय काम करने में समस्या होती है और
ऐसे में मालिकों के काम और मुनाफे में कमी आती है। इसके बाद उन महिलाओं को दूसरी
स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ होने लगी।
मातृत्व सुविधा और अन्य अवकाश
संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को गर्भावस्था के समय से
लेकर बच्चे को कुछ समय तक पालने के लिए मातृत्व अवकाश देने का प्रावधान है।
मातृत्व अवकाश में महिलाओं को भुगतान सहित अवकाश लेने की सुविधा होती है जिसमें वे
बच्चे को जन्म दे सकें और बच्चे की देखभाल कर सकें। वहीं असंगठित क्षेत्र की
महिलाएँ जो अलग–अलग तरह का काम करती हैं, उन्हें मातृत्व अवकाश के विषय में कोई
जानकारी नहीं होती है और गर्भावस्था के आठवें, नौवें महीने तक
वह लगातार काम करती हैं। कभी–कभी तो वह कार्यस्थल पर ही बच्चे को जन्म तक दे देती
हैं, उसके कुछ दिन के बाद वह अपने बच्चे को भी साथ लेकर मजदूरी करने के
लिए अपने कार्यस्थल की ओर चल पड़ती हैं।
जब देश भर में त्योहारों पर अवकाश मिल रहा होता है तब भी असंगठित
क्षेत्र की महिलाओं कोई अवकाश नहीं मिलता। जो महिलाएँ घरों में साफ–सफाई का काम
करती हैं, उन महिलाओं के लिए त्योहारों के समय और भी ज्यादा काम बढ़ जाता है। इन
महिलाओं के लिए न ही कोई अवकाश निश्चित है और न ही काम के घण्टे।
लैंगिकता के आधार पर वेतन में असमानता
असंगठित क्षेत्र के वे कार्य जहाँ महिला पुरुष दोनों समान प्रकार के
कार्य करते हैं वहाँ भी महिला व पुरुष के वेतन में भारी असमानता देखने को मिलती है।
इसका एक उदाहरण है–– मेरठ की एक पैकिंग फैक्ट्री। वहाँ महिला व पुरुष लगभग समान
प्रकार का पैकिंग कार्य करते हैं पर अगर वेतन की बात की जाये तो वहाँ पर पुरुषों
का वेतन 10000 रुपये प्रति माह है और उसी काम को महिलाएँ 7000
रुपये प्रतिमाह वेतन पर या इससे भी कम में काम करती हैं। एक महिला जो सुबह ऑफिस की
सफाई करती है उसके बाद पैकिंग के कार्य में लग जाती है, दोपहर में चाय
बनाकर रसोई की सफाई और बर्तन धोने के बाद फिर से पैकिंग के कार्य में लग जाती है,
उसका
वेतन 6000 रुपये है। जब उस महिला ने वेतन बढ़ाने की बात की तो उसके कामों में
कमी निकाल कर उसे नौकरी से निकाल दिया गया। वेतन बढ़ाने की बात पर नौकरी से निकाल
दिया जाना आम बात है और उतने ही वेतन में दूसरी महिला को काम पर बुला लिया जाता है।
नौकरी मिलने में कठिनाइयाँ
अक्सर देखा जाता है कि जो महिलाएँ कम पढ़ी–लिखी हैं या जो शादीशुदा
हैं, उनके लिए नौकरी पाना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि मालिकों
को अपने कार्यस्थल पर पढ़ी–लिखी और ऐसी लड़कियाँ चाहिए जिनकी शादी नहीं हुई या उनकी
शादी जल्दी न होने वाली हो। कारण जो महिलाएँ शादीशुदा हैं उनपर जिम्मेदारियाँ
होंगी, उनके बच्चे होंगे, जिसके चलते वह थोड़ा बहुत लेट आ–जा सकती
हैं, बच्चों के लिए वह कभी–कभी अवकाश ले सकती हैं जिसके कारण मालिकों के
काम में कमी आएगी। और अक्सर महिलाओं के पास शिक्षा की कमी के कारण, नौकरी
के लिए निकली भर्तियों की जानकारी पहुँच ही नहीं पाती है।
महिलाओं की तिहरी पाली की नौकरियाँ
एक महिला जो गृहणी होने के साथ–साथ कामकाजी महिला भी है, उसकी
नौकरी को तीन पालियों में बाँटा जा सकता है। पहली पाली में वह सुबह जल्दी उठकर घर
की साफ–सफाई से लेकर खाना बनाने, बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजने,
बुजुर्गों
की दवाई व उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी निभाती है। दूसरी पाली में चल पड़ती है
वह अपनी नौकरी पर जहाँ वह हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद मालिकों का बुरा बर्ताव व
शोषण–उत्पीड़न की शिकार होती है। शाम होने पर घर लौटती है। वहाँ से शुरू होती है
उसकी तीसरी पाली, जिसमें वह शाम का खाना बनाने से लेकर घर के अन्य काम करती है। इसके
बाद पूरा दिन थके होने के बावजूद भी उसे अपने पति के साथ हमबिस्तर होना पड़ता है।
उस महिला को होने वाली समस्याओं का अनुमान लगाना भी मुश्किल है।
हमें मिलकर सोचना है कि इन समस्याओं से निजात हमें कैसे मिलेगा?
–– आशा
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