कमला भसीन: ‘संगठित महिलाएँ न कभी हारी हैं न कभी हारेंगी’
दक्षिण एशिया में अपने नारों, गीतों और अकाट्य तर्कों से नारीवादी आन्दोलन को बुलन्दियों पर ले जाने वाली मशहूर लेखिका और नारीवादी आन्दोलनकारी कमला भसीन पिछले दिनों हमारे बीच नहीं रही। उन्होंने दक्षिण एशिया के नारीवादी आन्दोलन को नयी ऊँचाइयों तक ले जाने में एक अहम भूमिका निभायी। उन्होंने अपने गीतों, सरल भषा और सहज स्वभाव से अपने विचारों को आम जनमानस तक पहुँचायी।
उन्होंने ग्रामीण महिलाओं से लेकर महानगरीय संस्कृति में पली–बढ़ी महिलाओं को एक सूत्र में बाँधा और भारतीय नारीवादी आन्दोलन को एक संगठित स्वरूप देने में अहम भूमिका निभायी। उनके बात करने के अन्दाज से लेकर लोगों से मिलने–जुलने के उनके ढंग में एक ऐसा जादू और जीवन के प्रति उत्साह था जिससे वह मिलने वालों को भी मुश्किल लक्ष्यों के प्रति सकारात्मक बना देती थीं।
एक लम्बे समय से उनको जानने–समझने वालीं कविता श्रीवास्तव भारतीय नारीवादी आन्दोलन में उनके योगदान को बयाँ करते हुए कहती हैं, “कमला भसीन ने इस देश में अन्य बहनों के साथ मिलकर महिला आन्दोलन खड़ा करने में एक पायनियर की भूमिका अदा की है। दक्षिण एशियाई नारीवादी आन्दोलन का प्रसिद्ध नारा ‘पितृसत्ता से आजादी, मेरी बहनें माँगे आजादी, मेरी बेटी माँगे आजादी, मेरी अम्मी माँगे आजादी, भूख से माँगे आजादी–––’उन्होंने पाकिस्तान की साथी निखत के साथ मिलकर बनाया था। नारी
वादी आन्दोलन में उनकी कमी हमेशा महसूस की जायेगी।
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गेल ओम्वेट: गेल ओमवेट का जन्म भले अमरीका में हुआ था पर उन्होंने जीवन का बड़ा हिस्सा एक भारतीय नागरिक और यहाँ के दलित–उत्पीडित लोगों, जल–जमीन, पर्यावरण, नारी मुद्दों पर आवाज उठाने वाली एक विदुषी के रूप मे जिया! उन्होने अमरीका के बर्कले विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीएचडी किया। एक शोध अध्ययन के सिलसिले में वह भारत आयी और फिर यहीं की होकर रह गयीं। भारत में वे हमेशा दलित–उत्पीडित, हाशिये पर पड़े लोगों और महिलाओं की आवाज बनी रहीं।
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सोनल शुक्ल: बम्बई की नारीवादी नेता सोनल शुक्ला उन 49 महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने 1979 में मुंबई में पहला नारीवादी समूह ‘फोरम अगेंस्ट रेप’ बनाने के लिए बैठक में भाग लिया, इस समूह को बाद में ‘फोरम अगेंस्ट ऑप्रेशन ऑफ वीमेन’ नाम दिया गया। यह समूह कुख्यात मथुरा काण्ड (1979) के फैसले की प्रतिक्रिया के रूप में, जिसमें सुर्पीम अदालत ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में मथुरा नामक 16 वर्षीय आदिवासी लड़की से बलात्कार करने वाले दो पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया था, के विरोध में बना था। यह घटना भारत के नारीवाद के इतिहास में निर्णायक मोड़ साबित हुई। सोनल ताई आजीवन अलग–अलग मुद्दों पर महिलाओं को संगठित करती रहीं और महत्वपूर्ण विषयों को स्त्री–विमर्श का हिस्सा बनाती रहीं।
‘मुक्ति के स्वर टीम’ महिला मुक्ति की पथ–प्रदर्शक बहनों को आखिरी सलाम करती है–––
पितृसत्ता की ख़ास बात इसकी विचारधारा है जिसके तहत यह विचार प्रभावी रहता है कि पुरुष स्त्रियों से अधिक श्रेष्ठ हैं और महिलाओं पर पुरुषों का नियन्त्रण है या होना चाहिए।
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पितृसत्ता में महिलाएँ दोयम दर्जे की नागरिक होती है।
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पुरुष पितृसत्ता की तुलना में पितृसत्ता के खिलाफ बोलने वाली महिलाओं से अधिक नाराज होते हैं।
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नारीवाद इस बुनियादी धारणा पर आधारित है कि महिलाएँ भी इनसान हैं।
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मेरे लिए नारीवाद का अर्थ आत्मनिर्णय का अधिकार है, प्रत्येक स्त्री को स्वयं के अनुसार जीने और अपनी इच्छानुसार काम करने का अधिकार होना।
आखिरी सलाम
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