Saturday, February 22, 2020

पर्यावरण की रक्षा करती महिलाएँ



कुछ दिन पहले पृथ्वी का फेफड़ा कहा जाने वाला अमेजन वर्षा वन आग की लपटों में हफ्तों तक जलता रहा और यह बात हम लोगों को सोशल मीडिया के जरिये पता चली। समाचारों में इसका कहीं कोई जिक्र नहीं था, जो टीवी एंकर रात को प्राइम टाइम पर आकर गला फाड़–फाड़ कर बताते हैं कि चाँद पर क्या हो रहा है, मंगल में कैसे झाँके, परमाणु हमले में कैसे बचें आदि, उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं कि अमेजन धधक रहा है।
आग लगने की रिपोर्ट सबसे पहले ब्राजील के राष्ट्रीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संस्थान ने जून और जुलाई 2019 में दी, लेकिन इस मुद्दे को तब गम्भीरता से लिया गया जब नासा के सेटेलाइट से धुएँ की तस्वीर सामने आयी।
धुआँ इतना अधिक था कि शाओ पाब्लो शहर जो अमेजन जंगल से 2790 किमी दूर है, धुएँ की चादर से ढक गया, लगभग 22,40,000 एकड़ जंगल जले जो पूरे जंगल का लगभग 60 प्रतिशत है। 2018 के मुकाबले 2019 में ये आग 84 प्रतिशत बढ़ी है।
इस आग का सबसे ज्यादा असर वहाँ रहने वाली जनजातियों पर पड़ा। ब्राजील की अमापा राज्य का वापी समुदाय इस भीषण आग से सर्वाधिक प्रभावित हुआ। वर्षा वन में आग जनवरी से लगनी शुरू हुई, तब वहाँ के बुजुर्गों ने इस तरह की तबाही की भविष्यवाणी की थी “यदि हम मनुष्य इसी तरह ग्रह का दुरुपयोग करते रहे, तो सृष्टि का निर्माता एक दिन ऐसा दिन लायेगा जब महान आग होगी जो ग्रह को पिघला कर नष्ट कर देगी, यह समुदाय हमेशा से इसी जंगल में खाने, रहने, दवाइयों आदि के लिए आश्रित है।
इसी समुदाय की एक 59 वर्षीय महिला अजरती वापी अपनी हाईस्कूल भूगोल की कक्षा की सबसे उम्रदराज छात्रा हैं। इस उम्र में स्कूल जाना उनके मिशन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है ताकि वह अपने लोगांे और अमेजन के वर्षा वन में अपनी जमीन को बचा सके।
अजरती ने पुर्तगाली भाषा सीखनी भी शुरू कर दी है ताकि वह गोरों से बात कर अपनी बात दुनिया तक या एक ऐसी दुनिया में पहुँचा सके जो शायद इससे अनभिज्ञ है। कई वर्षों से वह इस सिलसिले में आने गाँव से ब्राजील, कोलम्बिया और जर्मनी तक जाकर अपने लोगों के स्वास्थ्य, जमीन व शिक्षा के अधिकार की बात रख चुकी है, जिनसे वे अभी तक वंचित हैं।
हालाँकि ये समुदाय पहली बार इन वनों के लिए नहीं लड़ा है, इससे पहले भी वे इन वनों और अपने अधिकारों के लिए लड़ चुके हैं जिसके फलस्वरूप 1996 में ब्राजील सरकार ने वापी की भूमि को चिन्हित कर इस समुदाय के लिए आरक्षित घोषित कर दिया था।
परन्तु हाल ही में इस भूमि पर गैरकानूनी खनन माफियों द्वारा अत्याधुनिक हथियारांे सहित आक्रमण किया गया जिसमें वापी के प्रमुख नेताओं में से एक एमर्या वापी की मृत्यु हो गयी।
हैरानी की बात यह है कि इन आक्रमणकारियों को ब्राजील के राष्ट्रपति बोलस्नारो द्वारा सरंक्षण दिया जा रहा है। ब्राजील के राष्ट्रपति बोलस्नारो के खिलाफ चल रहे विरोध को अनदेखा करना कठिन है। इन विरोधों में सबसे आगे मूलनिवासी महिलाएँ हैं, जो पर्यावरण और अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं।
महीने की शुरुआत में, राष्ट्रपति की नीतियों के विरोध में सैकड़ों महिलाएँ ब्राजील की सड़कों पर उतर आयीं और राजधानी में स्वास्थ्य मंत्रालय की एक इमारत पर कब्जा कर लिया, जिसमें मूलनिवासी जनजातियों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवा की माँग थी। बाद में वे ‘मार्गरीदास के मार्च’ में शामिल हुए, जहाँ उन्होंने बोल्सनारो की नरसंहार की नीतियों के खिलाफ विरोध किया और अमेजन वर्षा वन के संरक्षण का आह्वान किया। अपने धनुष, बाण और भाले का दान करते हुए महिलाओं ने बैनर लगाये, ‘अस्तित्व में लाने के लिए’ और मार्च करती हुई संसद की ओर बढ़ गयी।
वहीं दूसरी ओर एक्वाडोर की जनजाति वोरानी ने तेल माफिया के खिलाफ कोर्ट केस जीत लिया है।
अपने जल, जंगल, जमीन को बचाने की लड़ाई में ओडिशा के पुरी में 70 महिलाओं के एक दल ने 185 एकड़ वाले मैंग्रोव के जंगल को बचाने की मुहिम चलायी है। 20 साल से लाठी डण्डों से लैस महिलाएँ शिफ्ट में रोज जंगल की रखवाली करती हैं। महिलाएँ जंगल को अपने परिवार के सदस्य के तौर पर मानती हैं। एक वक्त था जब चिपको आन्दोलन ने पर्यावरण सुरक्षा को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया तो इंदिरा गाँधी ने हिमालय के वनों में पेड़ों की कटाई पर 15 वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा दिया था। स्थानीय निवासियों ने जंगलों में ठेकेदारों द्वारा पेड़ों की कटाई के विरोध में यह आन्दोलन शुरू किया था। जंगलों में पेड़ों की कटाई के खिलाफ लोग पेड़ों से चिपक गये थे और उनका कहना था कि पेड़ों के साथ हमें भी काट दिया जाये। इनमें मुख्य नाम गौरा देवी व उनके साथियों का आता है। आज जगह–जगह तमाम तरीकों से पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया जा रहा है, पेड़ कट रहे हैं और उन पेड़ों को गले लगाने वाले बहुत कम बचे हैं।
सितम्बर 2019 में दुनिया भर के 16 युवाओं ने बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति के साथ जलवायु परिवर्तन के बारे में गम्भीर कानूनी शिकायत की। इनमें भारत की 11 वर्षीय याचिकाकर्ता रिद्धिमा पाण्डे भी थी। उसने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक ऐसी समस्या नहीं है जिसे कोई भी देश अपने दम पर हल कर सकता है। इस संकट को हल करने के लिए सभी देशों को साथ आना चाहिए।
एक तरफ चैदह वर्षीय लड़की ऑटम पेल्टियर को उत्तरी ओंटारियो में 40 राष्ट्रों के लिए एक राजनीतिक वकालत करने वाले समूह एनिश्नबेक नेशन द्वारा मुख्य जल आयुक्त नामित किया गया है, जिसमें नॉर्थ शोर कॉरिडोर और मैनिटौलिन द्वीप के साथ प्रथम राष्ट्र भी शामिल हैं। पानी की रक्षा की तरफ पेल्टियर का ध्यान उस समय गया जब वह सिर्फ आठ साल की थी। ऑटम ने महान झीलों और पानी के दूसरे स्रोतों की रक्षा करने की वकालत की, और प्रधान मंत्री और विधानसभा के साथ स्वच्छ जल के महत्त्व पर बैठकें कीं। वर्ष 2018 में, पेल्टियर ने जल संरक्षण के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के नेताओं के सामने अपनी बात रखी।
वहीं एक सोलह वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग जिसने अपने देश स्वीडन में प्रदूषण के खिलाफ जंग शुरू की जो अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम में ग्रेटा ने विश्व नेताओं से कहा कि ‘आपने हमारे बचपन, हमारे सपनों को छीन लिया। आपकी हिम्मत कैसे हुई ?’ तो सभी निरुत्तर थे। लेकिन सवाल यह है कि कब तक ? ये जल, जंगल, जमीन हमारे लिए क्या मायने रखते हैं ये बात हमें समझ आती है, हम जैसे लाखों लोगों को समझ आती है तो हमारी सरकारों को क्यों नही ? ऐसे में तो मलाला युसुफजई की बात बिल्कुल सही साबित होती है “जब पूरा विश्व खामोश हो, तब एक आवाज भी ताकतवर बन जाती है।”

–– शालिनी  

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