Thursday, December 12, 2019

भारत में बढ़ती बलात्कार संस्कृति



आज भारतीय समाज में बलात्कार की घटनाएँ इतनी सामान्य बात हो गयी है कि लोग बिन बैचेनी के खबर पढ़ कर आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन दूसरी बडी घटना जो आजकल देखने को मिल रही है वह है बलात्कारियों के समर्थन में रैलियाँ निकालना, उन्हें राजनीतिक समर्थन मिलना। पीड़िता को रिर्पोट लिखवाने के लिए आत्महत्या करनी पड़ रही है। अगर रिर्पोट लिखी भी जाती है तो केस को कमजोर करने वाली धाराएँ लगायी जा रही हैं। बलात्कार की घटनाओं पर सक्रिय राजनीतिक, सामाजिक संगठन तब ही बोलते हैं जब उन्हें इसका कोई राजनीतिक लाभ मिलता है या दूसरे धर्म के लोगों के लिए साम्प्रदायिक भावना को भड़काने का मौका मिलता हो। आजम खान की महिला विरोधी टिप्पणी पर स्मृति ईरानी का बवाल खड़ा करना और चिन्मयानन्द द्वारा विशेष जाँच दल के सामने बलात्कार के आरोप कबूल करने और वीडियो वायरल होने के बाद भी उनका मुँह न खोलना इस बात के उदाहरण हैं।
आसिफा, ट्विंकल, सेंगर और चिन्मयानन्द से जुड़ी घटनाएँ हम सब के सामने हैं। आसिफा के हत्यारे और बलात्कारियों को बचाने के लिए कठुआ में रैली निकाली गयी। उन्नाव केस में पीड़िता को न्याय माँगना कितना महँगा पड़ा, इस बात का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पीड़िता के बाप को जेल में पीट–पीटकर मार डाला गया। कोर्ट से वापस आते वक्त बिना नम्बर प्लेट वाले ट्रक ने पीड़िता की कार पर हमला किया, जिसमें पीड़िता की मौसी और चाची की मौत हो गयी। पीड़िता और वकील भी गम्भीर रूप से घायल हो गये। उन्नाव में बलात्कार के आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर को बचाने के लिए रैली निकाली गयी। लोगों ने हाथों में तख्ती लेकर ‘हमारा विधायक निर्दोष है’ के नारे लगाये। इन दोनों ही केसों में आरोपियों को राजनीतिक समर्थन प्राप्त है। न्याय के लिए पीड़िता को और कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी इस बात का अन्दाजा लगाना मुश्किल है। क्या भारत में न्याय मिलना असम्भव नहीं होता जा रहा है ? 
संस्कृति और सभ्यता को बचाने के लिए राजनीतिक और धार्मिक दल तो बहुत बन गये हैं पर ये दल वास्तव में क्या कर रहे है ? क्या ये लोग सीधी–साधी जनता को उल्लू बनाकर भोग–विलास, व्यभिचार, कामुकता, ढोंग–पाखण्ड, ऐशो–आराम की जिन्दगी नहीं जी रहे हैं। 
सत सार्इं बाबा, राम रहीम, आशाराम बापू, प्रेम बाबा, फलाहारी बाबा, सूरा बाबा, ज्योतिगिरि महाराज जैसे प्रमुख धार्मिक गुरु बलात्कार में लिप्त रहे हैं। इन सब पर बलात्कार के आरोप हैं और इनमें से ज्यादातर जेल में है या बेल पर हैं। इन बाबाओं के लाखों की संख्या में अनुयायी हैं। ऐसे कितने ही बाबा हैं जो संस्कृति की चादर ओढ़कर बलात्कार जैसे घिनौने काम को अन्जाम देते हैं। इन धार्मिक गुरुओं को राजनीतिक पार्टियों का समर्थन प्राप्त होता है। बाबाओं के ये अनुयायी राजनीतिक पार्टियों के वोट बैंक का काम करते हैं। किसी फिल्म के दृश्य या डायलॉग के खिलाफ ये लोग सड़कों पर निकल कर विरोध करते हैं पर बलात्कार जैसी घटना पर मुँह तक नहीं खोलते। संस्कृति के रक्षक राजनीतिक दलों में भी दुराचार की घटनाएँ कोई बड़ी बात नहीं रह गयी हैं।
थॉमसन रॉयटर फाउण्डेशन के सर्वे के अनुसार भारत इस साल महिलाओं के लिए दुनियाभर में सबसे असुरक्षित देश बन गया है। यहाँ अगर कोई लड़की अपनी पसन्द के लड़के से शादी कर लेती है तो ज्यादातर मामलों में उसे जान से मार दिया जाता है या जबरन किसी दूसरे लड़के से उसकी शादी करा दी जाती है। इस साल कुछ ऐसी भी घटनाएँ सामने आयी हैं जिनमें अपनी पसन्द के लड़के से शादी करने की वजह से लड़की के बाप–भाई और रिश्तेदारों ने लड़की को सबक सिखाने के लिए उसका बलात्कार किया। ये कैसा समाज है जहाँ एक लड़की आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी और अपनी मर्जी से जीना चाहे तो उसको चरित्रहीन, बेशर्म, आवारा और तरह–तरह के उपनामांे से उसका जीना दुश्वार कर दो और इसके बाद भी लड़की अपना बराबरी का हक माँगे तो सबक सिखाने के लिए उसके साथ बलात्कार करो और इज्जत बचाने के नाम पर उसको घर में कैद कर दो।
हमारे देश भारत में एक तरफ तो औरतों को देवी माना जाता है तो दूसरी तरफ पाँव की जूती। उसका दर्जा पुरुषों से नीचा समझा जाता है। रोजमर्रा की जिन्दगी में उनके साथ मारपीट, गाली–गलौज, शादी के बाद बिना मर्जी के सेक्स करना सामान्य बात हैं। हम अपने आप–पास रोजाना औरतों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करते लोगों को देखते हैं। भारत में औरत को इनसान का दर्जा अभी तक नहीं मिला है, वह देवी है, पाँव की जूती है पर इनसान तो बिल्कुल नहीं है। क्या यही भारतीय संस्कृति है जिसे बचाने के लिए रोज ब रोज बलात्कार, मॉब लिंचिंग, गौरक्षा के नाम पर हत्या, दंगे और तमाम तरह के अपराधों को अंजाम दिया जा रहा है ? अगर यही भारतीय सभ्यता संस्कृति है तो बर्बरता क्या होती है ?
यहाँ ये सवाल उठता है कि जो सरकार नोटबन्दी के लिए रातोंरात लाखों की संख्या में लोगों को बैंको की लाइन में खड़ा करवा सकती है, घर में रखे हजार के नोट को खाक में बदल सकती है, अनुच्छेद 370 हटाने के लिए पूरे कश्मीर को कैद कर सकती है, क्या वही सरकार बलात्कार के मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठा सकती। बलात्कार के मामले पर सरकार की चुप्पी से हम क्या समझें ? आज संसद में बैठे ज्यादातर सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इस बात से हम क्या समझें ? और क्या सच में हम इन से उम्मीद करते हैं कि ये सरकार बलात्कार के मामलों में कोई ठोस कदम उठायेगी ? इनसे उम्मीद रखने वाले लोगों को शीर्ष पर विराजमान वर्तमान नेताओं के बलात्कार की घटना पर दिये गये बयानांे पर भी हमें एक नजर डाल लेनी चाहिए कि उनकी सोच कैसी है–– 
(1) मुलायम सिंह यादव (समाजवादी पार्टी)––  लड़कों से गलतियाँ हो जाती हैं। 
(2) मेनका गाँधी (भाजपा सांसद)–– भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है, दो–चार बलात्कार कर भी दिये तो बुराई क्या है ?
(3) पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली (भाजपा नेता)–– दिल्ली में बलात्कार की छोटी सी घटना को इतना प्रचारित किया गया कि वैश्विक पर्यटन क्षेत्र में नुकसान उठाना पड़ा।
(4) रामसेवक पैकरा (भाजपा नेता)–– बलात्कार जानबूझकर नहीं बल्कि दुर्घटनावश हो जाता है। ये एक सामाजिक अपराध है जो पुरुष और महिला दोनों पर निर्भर करता है।
ममता बनर्जी (तृणमूल काँग्रेस), अबू आजमी (सपा नेता), मोहन भागवत (आरएसएस), साक्षी महाराज (भाजपा नेता), बाबूलाल गौर (मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, भाजपा नेता), मीनाक्षी लेखी (भाजपा प्रवक्ता), कविन्दर गुप्ता (वरिष्ठ भाजपा नेता), केजी जॉर्ज (कर्नाटक गृहमंत्री, भाजपा नेता) और न जाने कितने नेताओं ने बलात्कार पर अपने विवादित बयान देकर यह साबित कर दिया कि वे सब के सब महिला विरोधी हैं। 
रेणुका चैधरी (कांग्रेस नेता) का कहना है कि सुबह उठते ही कोई न कोई बलात्कार के बारे में बात करता है। बलात्कार तो चलते ही रहते हैं। जो लोग ये मानते हैं कि बलात्कार की घटना को खत्म नहीं किया जा सकता उन्हें दूसरे देशों के समाज से भी कुछ सीख लेना चाहिए। ऊल–जलूल बयान देकर जनता को गुमराह करने के बजाय उन्हें देखना चाहिए कि समाजवादी रूस ने अपने देश से वेश्यावृत्ति और बलात्कार की घटना को कैसे जड़ से खत्म किया था। इसी पर आधारित एक किताब है “पाप और विज्ञान” हम सब को उसे पढ़ना चाहिए।
साथियो, अब समय आ गया है कि बलात्कार और वेश्यावृत्ति से मुक्त और सुरक्षित भारत की मुहिम में शामिल हों और मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करेें जो आजादी और बराबरी के आदर्शों पर टिका हो, जिस में सब सुरक्षित, आजाद पक्षी की तरह नीले आसमान में लम्बी उड़ान भर सकें। 

–– शशि चौधरी


(मुक्ति के स्वर अंक 22)

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